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गा०९४] अपूर्वकरण-स्वरूप-निरूपण
६२५ ७९. अपुचकरणपढमसमये द्विदिखंडयं जहण्णगं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो उकस्सगं सागरोवमपुधत्तं ।. ८०. द्विदिबंधो अपुरो । ८१. अणुभागखंडयमप्पसत्थकम्मसाणमणता भागा । ८२. तस्स पदेसगुणहाणिहाणंतरफयाणि थोवाणि । ८३. अइच्छावणाफद्दयाणि अणंतगुणाणि । ८४. णिक्खेवफद्दयाणि अणंतगुणाणि । ८५. आगाइदफयाणि अणंतगुणाणि । ८६.. अपुव्वकरणस्स चेव पढमसमए आउगवज्जाणं कम्माणं गुणसे ढिणिक्खेवो अणियट्टिअद्धादो अपुव्वकरणद्धादो च विसेसाहिओ । ८७. तम्हि द्विदिखंडयद्धा ठिदिवंधगद्धा च तुल्ला । ८८. एक्कम्हि द्विदिखंडए अणुभागखंडयसहस्साणि घाददि । ८९. ठिदिखडगे समत्ते
संख्यात सहस्र स्थितिबन्धापसरणोके होनेपर अधःप्रवृत्तकरणका काल समाप्त हो जाता है ॥७४-७८॥
चूर्णिसू०-अपूर्वकरणके प्रथम समयमे जघन्य स्थितिखंड पल्योपमका संख्यातवाँ भाग है और उत्कृष्ट स्थितिखंड सागरोपमपृथक्त्व है। अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें होनेवाले स्थितिवन्धसे पल्योपमके संख्यातवें भागसे हीन अपूर्व स्थितिवन्ध अपूर्वकरणके प्रथम समयमे होता है । अपूर्वकरणके प्रथम समयमे अनुभागकांडकघात अप्रशस्त प्रकृतियोका अनन्त बहुभाग होता है। विशुद्धिके बढ़नेसे प्रशस्त कोंके अनुभागकी वृद्धि तो होती है, पर अनुभागका घात नहीं होता है ॥७९-८१॥ .
अब चूर्णिकार अनुभागकांडकघातका माहात्म्य बतलाने के लिए अल्पबहुत्व कहते हैं
चूर्णिसू०-अनुभागके एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरमे जो अनुभागसम्बन्धी स्पर्धक हैं, वे वक्ष्यमाण पदोकी अपेक्षा सबसे कम है। उनसे अतिस्थापनाके स्पर्धक अनन्तगुणित होते हैं, ( क्योंकि जघन्य भी अतिस्थापनाके भीतर अनन्त गुणहानिस्थानान्तर पाये जाते हैं। ) अतिस्थापनाके स्पर्धकोसे निक्षेप सम्बन्धी स्पर्धक अनन्तगुणित होते है। निक्षेपसम्बन्धी स्पर्धकोसे अनुभागकांडकरूपसे ग्रहण किये गये स्पर्धक अनन्तगुणित होते हैं, (क्योकि, यहॉपर संभव द्विस्थानीय अनुभागसत्त्वके अनन्तवें भागको छोड़कर शेष अनन्त बहुभागको कांडकस्वरूपसे ग्रहण किया गया है । ) अपूर्वकरणके ही प्रथम समयमे आयुको छोड़कर शेष कर्मोंका गुणश्रेणीनिक्षेप अनिवृत्तिकरणके कालसे और अपूर्वकरणके कालसे विशेष अधिक है। अपूर्वकरणमे स्थितिकांडकका उत्कीरणकाल और स्थितिबंधका काल, ये दोनो तुल्य होते है । ( क्योकि इन दोनोंका काल अन्तर्मुहूर्तमात्र है । इतना विशेष है कि प्रथम स्थितिकांडकके उत्कीरणकाल और स्थितिवन्धके काल यथाक्रमसे विशेष हीन होते जाते है । ) एक स्थितिकांडकके कालमें सहस्रो अनुभागकांडकोका घात करता है, (क्योकि, स्थितिकांडकके उत्कीरण-कालसे अनुभागकांडकका उत्कीरण-काल संख्यातगुणित हीन होता है। ) स्थितिकांडक-घातके समाप्त होनेपर अनुभागकांडक-घात और स्थितिवन्धकका काल
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