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कसाय पाहुड सुत्त [१० सम्यक्त्व अर्थाधिकार णीय-इन्थि-णबुंसयवेद-अरदि-सोग-चदुआउ-णिरयगदि-चदुजादि-पंचसंठाण-पंचसंघडण - णिरयगइपाओग्गाणुपुग्वि-आदाव-अप्पसत्थविहायगइ-थावर सुहुम-अप्पज्जत्त - साहारणअथिर-असुभ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-अजसमित्तिणामाणि एदाणि बंधेण वोच्छिण्णाणि। वेद, अरति, शोक, चारो आयु, नरकगति, पंचेन्द्रियजातिके विना चार जाति, प्रथम संस्थानके विना पॉच संस्थान, प्रथम संहननके विना पाँच संहनन, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आताप, अप्रशस्तविहायोगति, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त , साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और अयशःकीर्ति, ये प्रकृतियाँ बंधसे पहले ही व्युच्छिन्न हो जाती हैं ॥४०-४१॥
विशेपार्थ-दर्शनमोहके उपशम होनेसे पूर्व ही इन उपर्युक्त प्रकृतियोंकी बन्धव्युच्छित्ति इस क्रमसे होती है-दर्शनमोहके उपशमनके लिए उद्यत सातिशय मिथ्यादृष्टि जीवके अभव्योके बंधने योग्य अन्तकोड़ा कोड़ी-प्रसाण स्थितिवन्धकी अवस्था तक तो एक भी कर्म-प्रकृतिका बन्ध-विच्छेद नहीं होता है। इससे अन्तर्मुहूर्त ऊपर जाकर सागरोपमशतपृथक्त्वप्रमाण स्थितिबन्धापसरण होनेपर अन्य स्थितिको बाँधनेके कालमे सबसे पहले नरकायुकी वन्ध व्युच्छिति होती है । इससे आगे सागरोपमपृथक्त्व स्थितिवन्धापसरण होनेपर तिर्यगायुकी वन्ध-व्युच्छित्ति होती है । इससे आगे सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर मनुष्यायुकी वन्ध-ज्युच्छित्ति होती है। इससे आगे सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर देवायुकी वन्ध-व्युच्छित्ति होती है। इससे आगे सागरोपमपृथक्त्व स्थितिवन्धापसरण होनेपर नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वी का एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है। इससे आगे सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीर इन तीन अन्योन्यानुगत प्रकृतियोका एक साथ बन्ध-विच्छेद होता है। तत्पश्चात् सागरोपमशतपृथक्त्व स्थितिवन्धापसारण होनेपर सूक्ष्म, अपर्याप्त और प्रत्येकशरीर इन तीन अन्योन्यानुगत प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-विच्छेद होता है। तत्पश्चात् सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होने पर वादर, अपर्याप्त और साधारणशरीर इन तीन अन्योन्यानुगत प्रकृतियोका एकसाथ वन्ध-विच्छेद होता है। तत्पश्चात् सागरोग. क्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर वादर, अपर्याप्त और प्रत्येकशरीर, इन तीन अन्योन्यानुगत प्रकृतियोका एक साथ बन्धविच्छेद होता है। पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिवन्धापसरण होनेपर द्वीन्द्रियजाति और अपर्याप्तनामका परस्पर-संयुक्त रूपसे बन्ध-विच्छेद होता है। पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिवन्धापसरण होनेपर त्रीन्द्रियजाति और अपर्याप्तनामका परस्पर-संयुक्तरूपसे बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिवन्धापसरण होनेपर चतुरिन्द्रियजाति और अपर्याप्तनामका परस्पर संयुक्तरूपसे वन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिवन्धापसरण होनेपर असंज्ञिपंचेन्द्रियजाति और अपर्याप्तनामका परस्पर-संयुक्तरूपसे वन्ध विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिबन्धापसरण होनेपर संज्ञिपंचेन्द्रियजाति और अपर्याप्तनामका परस्पर-संयुक्तरूपसे बन्ध-विच्छेद होता है । पुनः सागरोपमपृथक्त्व स्थितिवन्धापसरण होनेपर