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गा० ७३ ] कषाय-चतुःस्थान-निरूपण
५९९ (१९) वंसीजण्हगसरिसी मेंढविसाणसरिसी य गोमुत्ती।
___ अवलेहणीसमाणा माया वि चउव्विहा भणिदा ॥७२॥ (२०) किमिरागरत्तसमगो अक्खमलसमो य पंसुलेवसमो।
हालिहवत्थसमगो लोभो वि चउविहो भणिदो ॥७३॥ अस्थिसे भी मन्द अनुभागवाली हो और प्रयत्नसे कोमल हो सके, उसे काष्ठके समान मान कहा है । जो मान लताके समान मृदु हो, अर्थात् शीघ्र दूर हो जाय, उसे लतासमान मान जानना चाहिए । इस प्रकार कालकी हीनाधिकताकी अपेक्षा क्रोध और परिणामोकी तीव्र-मन्दताकी अपेक्षा मानके चार-चार भेद कहे गये हैं।
माया भी चार प्रकारकी कही गई है-वाँसकी जड़के सदृश, मेंढ़ेके सींगके सदृश, गोमूत्रके सदृश और अवलेखनीके समान ॥७२॥
विशेषार्थ-जिस प्रकार वॉसके जड़की कुटिलता पानीमें गलाकर, मोड़कर या किसी भी अन्य उपायसे दूर नहीं की जा सकती है, इसी प्रकार जो मायारूप कुटिल परिणाम किसी भी प्रकारसे दूर न किये जा सकें, ऐसे अत्यन्त वक्र या कुटिलतम भावोकी परिणतिरूप मायाको वॉसकी जड़के समान कहा गया है। जो माया कपाय उपयुक्त मायासे तो मन्द अनुभागवाली हो, फिर भी अत्यन्त वक्रता या कुटिलता लिये हुए हो, उसे मेढ़ेके सीग सदृश कहा है । जैसे मेंढ़ेके सींग अत्यन्त कुटिलता लिये होते है, तथापि उन्हे अग्निके ताप आदि द्वारा सीधा किया जा सकता है । इसी प्रकार जो मायापरिणाम वर्तमानमें तो अत्यन्त कुटिल हो, किन्तु भविष्यमें गुरु आदिके उपदेश-द्वारा सरल बनाये जा सकते हो, उन्हे मेंढ़ेके सींग समान जानना चाहिए। जैसे चलते हुए मूतनेवाली गायकी मूत्र-रेखा वक्रता लिए हुए होती है उसी प्रकार जो मायापरिणाम मेढ़ेके सीगसे भी कम कुटिलता लिये हुये हो, उन्हे गोमूत्रके समान कहा गया है। जिन माया-परिणामोमे कुटिलता अपेक्षाकृत सबसे कम हो, उन्हे अवलेखनीके समान कहा गया है। अवलेखनी नाम दातुन या.जीभका मैल साफ करनेवाली जीभीका है, इसमे औरोकी अपेक्षा वक्रपना सबसे कम होता है और वह सरलतासे सीधी की जा सकती है। इसी प्रकार जिस मायाम कुटिलता सबसे कम हो और जो बहुत आसानीसे सरल की जा सकती हो, उसे अवलेखनीके समान जानना चाहिए । . लोभ भी चार प्रकारका कहा गया है-कृमिरागके समान, अक्षमलके समान, पांशुलेपके समान और हारिद्रवस्त्र के समान ॥७३॥
विशेषार्थ-कृमि नाम एक विशेष जातिके छोटेसे कीड़ेका है। उसका ऐसा स्वभाव है कि वह जिस रंगका आहार करता है, उसी रंगका अत्यन्त सूक्ष्म चिकना सूत्र ( डोरा) अपने मलद्वारसे बाहर निकालता है । उस सूत्रसे तन्तुवाय (जुलाहे या युनकर) नाना प्रकारके बहुमूल्य वन बनाते हैं । उन वस्रोका रंग प्राकृतिक होनेसे इतना पका होता है कि तीक्ष्णसे