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कसाय पाहुड सुत्त [८ चतुःस्थान अर्थाधिकार (२८) एदेसि टाणाणं कदमं ठाणं गदीए कदमिस्से ।
बद्ध च बज्झमाणं उवसंतं वा उदिण्णं वा ॥१॥ (२९) सण्णीसु असण्णीसु य पजते वा तहा अपजते ।
सम्मत्ते मिच्छत्ते य मिस्सगे चेय बोद्धव्वा ॥२॥ (३०) विरदीय अविरदीए विरदाविरदे तहा अणागारे ।
सागारे जोगम्हि य लेस्साए चेव बोद्धव्वा ॥८३॥ घाती ही है । यह व्यवस्था चारो कपायोके स्थानोंमें समान ही है, इसी बातके वतलानेके लिए इस गाथाकी स्वतंत्र रचना की गई है।
गति आदि मार्गणाओमे इन उपर्युक्त स्थानोके वन्ध, सत्त्व आदिकी अपेक्षा विशेष निर्णयके लिए आचार्य आगेके गाथा-सूत्रोको कहते हैं
इन उपर्युक्त स्थानों से कौन स्थान किस गतिमें बद्ध, वध्यमान, उपशान्त या उदीर्ण रूपसे पाया जाता है ? ॥८१॥
इस गाथामे उठाये गये सर्व प्रश्नोका समाधान आगे कही जानेवाली गाथाओके आधारपर किया जायगा।
उपर्युक्त सोलह स्थान यथासंभव संज्ञियोंमें, असंज्ञियोंमें, पर्याप्तमें, अपर्याप्तमें सम्यक्त्वमें मिथ्यात्वमें और सम्यग्मिथ्यात्वमें जानना चाहिए ॥८२॥
विशेषार्थ-उपर्युक्त सोलह स्थान संज्ञी आदि मार्गणाओमें पाये जाते हैं, यह वतलानेके लिए गाथापठित संजी आदि पदोके द्वारा कई मार्गणाओकी सूचना की गई है । जैसे संजी-असंज्ञी पदोसे संनिमार्गणाकी, पर्याप्त-अपर्याप्त पदोसे काय और इन्द्रियमार्गणाकी और सम्यक्त्व, मिथ्यात्व आदि पदोसे सम्यक्त्वमार्गणाको सूचना की गई है । शेष मार्गणाओकी सूचना आगेकी गाथामेकी गई है । तदनुसार यह अर्थ होता है कि वे सोलह स्थान यथासंभव गति आदि चौदह मार्गणाओमे पाये जाते हैं।
वे ही सोलह स्थान अविरतिमें, विरतिमें, विरताविरतमें, अनाकार उपयोगर्म, साकार उपयोगमें, योगमें और लेश्यामें भी जानना चाहिए ।।८३॥
___ विशेषार्थ-गाथा-पठित विरति आदि पदोसे संयममार्गणाकी, अनाकार पदसे दर्शनमार्गणाकी, साकार पदसे ज्ञानमार्गणाकी, योग पदसे योगमार्गणाकी और लेश्या पदसे लेण्या मार्गणाकी सूचना की गई है। इस प्रकार इन दोनो गाथाओसे उपर्युक्त नौ मार्गणाओंकी तो स्पष्टतः ही सूचना की गई है। शेष पॉच मार्गणाओका समुच्चय गाथा-पठित ,'च' या 'चैव' पदसे किया गया है।