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गा०६९]
कषाय-परिवर्तन-वार-निरूपण असंखेज्जेसु आगरिसेसु गदेसु सई लोभागरिसी अदिरेगा भवदि । १०८. असंखेज्जेसु लोभागरिसेसु अदिरेगेसु गदेसु कोधागरिसेहिं मायागृरिसा अदिरेगा होइ । १०९. पाटीसे असंख्यात अपकर्षो अर्थात् परिवर्तनवारोके व्यतीत हो जानेपर एक बार लोभकपायके परिवर्तनका वार अतिरिक्त अर्थात् अधिक होता है ॥१०६-१०७॥
विशेषार्थ-यहाँ पर यद्यपि सामान्यसे ही कषायोके उपयोग-परिवर्तनका क्रम बतलाया जा रहा है, तथापि वह तिर्यंच और मनुष्यगतिका ही प्रधानरूपसे कहा गया समझना चाहिए। कपायोके उपयोगका परिवर्तन इस क्रमसे होता है—मनुष्य-तिर्यंचोके पहले एक अन्तर्मुहूर्त तक लोभकषायरूप उपयोग होगा। पुनः उसके परिवर्तित हो जाने पर एक अन्तर्मुहूर्त तक मायाकपायरूप उपयोग होगा। पुनः उसका काल समाप्त हो जाने पर एक अन्तर्मुहूर्त तक क्रोधकषायरूप उपयोग होगा । पुनः इस उपयोग-कालके भी समाप्त हो जाने पर एक अन्तर्मुहूर्त तक मानकषायरूप उपयोग होगा। इस क्रमसे असंख्यात परिवर्तनवारोके व्यतीत हो जाने पर पीछे लोभ, माया, क्रोध और मानरूप होकर पुनः लोभकषायसे उपयुक्त होकर मायाकपायके उपयोगमें अवस्थित जीव उपर्युक्त परिपाटी-क्रमसे क्रोधरूप उपयुक्त नहीं होगा, किन्तु पुनः लौटकर लोभकषायरूप उपयोगके साथ अन्तर्मुहूर्तकाल रहकर पुनः मायाकषायका उल्लंघन कर क्रोधकपायरूप उपयोगको प्राप्त होगा और तत्पश्चात् मानकषायको । इसी प्रकार पूर्वोक्त अवस्थित परिपाटी-क्रमसे चारो कषायोके असंख्यात उपयोग परिवर्तन-वार व्यतीत हो जाने पर पुनः एक वार लोभकषाय-सम्बन्धी परिवर्तन-वार अधिक होता है।
चूर्णिसू०-उक्त प्रकारसे असंख्यात लोभकपायसम्बन्धी अपकर्षों अर्थात् परिवर्तनवारोके अतिरिक्त हो जाने पर क्रोधकषाय-सम्बन्धी परिवर्तन-वारसे मायाकपाय-सम्बन्धी उपयोगका परिवर्तन-बार अतिरिक्त होता है ॥१०८॥
विशेषार्थ-ऊपर जिस अवस्थित लोभ, माया, क्रोध और मानके परिवर्तन क्रमसे असंख्यात अपकर्ष व्यतीत होने पर एक बार लोभ-अपकर्ष अतिरिक्त होता है यह बतलाया गया, उसी प्रकार असंख्यात लोभ अपकर्पोके अधिक हो जाने पर मायाकपाय-सम्बन्धी अपकर्षे अधिक होगा । अर्थात् उक्त अवस्थित अपकर्ष-परिपाटी-क्रमसे लोभके पश्चात् माया
और क्रोधके परिवर्तन हो जानेपर पुनः लौटकर मायाके उपयोगके साथ अन्तर्मुहूर्त तक रहकर तत्पश्चात् क्रोधका उल्लंघन कर मानको प्राप्त होगा । पुनः अवस्थित परिपाटीसे असंख्यात लोभापकर्षों के व्यतीत हो जाने पर फिर उसी क्रमसे एक वार मायाका अपकर्प अधिक होगा। इसी बातको बतलानेके लिए सूत्रकारने कहा है कि असंख्यात लोभ-अपकर्पोके अतिरिक्त हो जाने पर क्रोध-अपकर्पसे माया-अपकर्ष अतिरिक्त होता है । इस प्रकार मायापकर्पके असंख्यात अतिरिक्त वार होते है, तब वक्ष्यमाण अन्य क्रम प्रारम्भ होता है।
१ एत्थागरिसा ति वुत्ते परियणवाराणि गहेयव्व । जयध. २ अदिरित्ता अहिया ( अधिकाः) इत्यर्थः । जयघ० ७२