________________
कसाय पाहुड सुत्त [७ उपयोग-अर्थाधिकार २०५. अधवा अणेगेसु कसाय-उदयहाणेसु अणेगेसु वा कसाय-उवजोगद्धट्ठाणेसु । २०६. एसा पुच्छा । २०७ अयं णिहसो। २०८. तसा एक्शेक्कम्मि कसायुदयट्ठाणे आवलियाए असंखेज्जदिभागो । २०९. कसाय-उवजागट्ठाणेसु पुण उक्कस्सेण असंखेज्जाओ सेडीओ। २१०. एवं भणिदं होइ सब्बामओ गदीओ णियमा अणेगेसु कसायुदयहाणेसु अणेगेसु च कसायउवजोगद्धट्ठाणेसु त्ति ।
२११. तदो एवं परूवणं कादण णवहिं पदेहि अप्पाबहुअं । २१२. तं जहा । २१३. उक्कस्सए कसायुदयट्ठाणे उक्कस्सियाए माणोवजोगद्धाए जीवा थोवा । २१४. उपयुक्त होती है, अथवा अनेक कपाय-उदयस्थानामे और अनेक कपायोपयोगकालस्थानोमें कौन गति उपयुक्त होती है ? यह पृच्छा है। उसके निर्णय करनेके लिये अब यह निर्देश किया जाता है । वह इस प्रकार है-एक एक कपायके उदयस्थानमे त्रसकायिक जीव उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भागमात्र होते हैं ॥२०४-२०८॥
विशेषार्थ-यहॉपर 'एक कपाय-उदयस्थानमे कौन गति उपयुक्त है' इस पृच्छाका निर्णय त्रसजीवोके आश्रयसे किया जा रहा है । जिसका अभिप्राय यह है कि यदि आवलीके असंख्यात भागमात्र त्रसजीवोका एक कपाय-उदयस्थान पाया जाता है, तो जगत्प्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण त्रसजीवराशिके भीतर कितने कषाय-उदय-स्थान प्राप्त होगे ? इस प्रकार त्रैराशिक करनेपर असंख्यात जगच्छणीप्रमाण कपाय-उदयस्थान उपलब्ध होते हैं । यद्यपि सभी कपायोदयस्थानोमे त्रसजीवोका अवस्थान सशरूपसे सम्भव नहीं है, तो भी समीकरण करनेके लिए इस प्रकारसे त्रैराशिक किया गया है।
चूर्णिसू०-किन्तु एक एक कपायके उपयोगकाल स्थानमें उत्कर्पसे असंख्यात जगच्छणी प्रमाण सजीव रहते हैं । इस प्रकार उपयुक्त व्याख्यानसे यह अर्थ निकलता है कि सभी गतिवाले जीव नियमसे अनेक कषाय-उदयस्थानोमे और अनेक कपायोपयोग-कालस्थानोमें उपयुक्त रहते हैं ॥२०९-२१०॥
चूर्णिसू०-इस प्रकार गाथाके अर्थका प्ररूपण करके अब गाथासे सृचित अल्पबहुत्वको नौ पदोके द्वारा कहते हैं। वह अल्पवहुत्व इस प्रकार है-उत्कृष्ट कपायोदयस्थानमें और उत्कृष्ट मानकपायोपयोगकालमे जीव सबसे कम होते हैं । इससे उत्कृष्ट कपायोदयस्थानमें
१ काणि ताणि णव पदाणि ? माणादीणमेक्केकरस कसायस्स जहण्णुक्कस्साजण्णाणुकस्सभेयभिष्णकसायुदयछाणपडिबद्धाण तिण्ह पदाण कसायोवजोगवाटाणेहि तहा चेव तिहाविहत्तहिं सजोगेण समुप्पप्णाणि णव पदाणि होति । जयध०
२ उक्कत्सकसायोदयट्ठाण णाम उक्तस्साणुभागोदयजणिदो म्सायपरिणामो असंखेजलोयभेय भिण्णाणमझवसाणट्ठाणाणं चरिमझवसाणट्ठाणमिदि वुत्त होदि । उकस्मियाए माणीवजोगदाए त्ति वुत्ते माणकसायरस उकत्सकालोवजोगवग्गणाए गण कायव । तदो एदेहिं दोहि उत्सपदहि माण कसायपडिवहिं अण्णोष्णसजुत्तेहि परिणदा तसजीवा योवा ति उत्तत्यमव धो । वृदो?xx दोप्द पि उधारसमावेण परिणमताण लाणमुवएसादो | जयघ०