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कसाय पाहुड सुत्त
[ ७ उपयोग-अर्थाधिकार
१८३. चउत्थीए गाहाए विहासा ।
एक दु अणुभागे एककसायम्मि एककालेण ।
उवजुत्ता का च गढ़ी विसरिसङ्घव जुजदे का च ॥ त्ति
१८४. एदं सव्वं पुच्छासुतं । १८५ एत्थ विहासाए दोणि उवएसा । १८६. एक्केण उवएसेण' जो कसायो सो अणुभागो । १८७. कोधो कोधाणुभागो । १८८. एवं माण- माया लोभाणं । १८९. तदो का च गदी एगसमएण एगकसायोवजुत्ता वा दुकसायोवजुत्ता वा तिकसायोवजुत्ता वा चदुकसायो जुत्ता वा चि एदं पुच्छासुतं । १९० तदो दिरिसणं । १९१. तं जहा । १९२. णिरय- देवगदीणमेदे वियप्पा अस्थि, सेसाओ गदीओ णियमा चदुकसायोवजुत्ताओ ।
चूर्णिसू० ० - अब चौथी गाथाकी अर्थविभाषा की जाती है " एक कपाय- सम्बन्धी एक अनुभागमे और एक ही कालमे कौन गति उपयुक्त होती है, अथवा कौन गतिविसदृश अर्थात् विपरीत-क्रम से उपयुक्त होती है ।" यह समस्त गाथा पृच्छसूत्र है । इस गाथाकी अर्थविभाषामें दो उपदेश पाये जाते है । एक अर्थात् अप्रवाह्यमान उपदेशके अनुसार जो कपाय है, वही अनुभाग है । अतएव जो क्रोधकषाय है वही क्रोधानुभाग है । इसी प्रकार से जो मानकपाय है, वही मानानुभाग है । जो मायाकपाय है, वही मायानुभाग है और जो लोभकषाय है, वही लोभानुभाग है । इसलिए कौन गति एक समयमे एक कषायसे उपयुक्त है, अथवा कौन गति एक समयमें दो कषायोसे उपयुक्त है, अथवा तीन कषायोसे उपयुक्त है, अथवा चार कषायोसे उपयुक्त है ? इस प्रकार यह सर्व पृच्छासूत्र है ॥१८३-१८९॥
विशेषार्थ - कौन गति एक समयमे एक कषायसे उपयुक्त है, यह प्रथम पृच्छा है और कौन गति दो, तीन अथवा चार कपायोसे उपयुक्त है, यह द्वितीय पृच्छा है । जो कि 'कौन गति विसदृश क्रमसे उपयुक्त होती है, इस अन्तिम चरण से उत्पन्न हुई है ।
चूर्णि सू० ० - अब इन दोनो पृच्छाओके अनन्तर उनका निदर्शन अर्थात् निर्णय करते है । वह इस प्रकार है- नरकगति और देवगतिमे ये उपर्युक्त विकल्प होते हैं । किन्तु शेप दोनों गतियाँ नियमसे चारो कपार्यो से उपयुक्त होती हैं ॥। १९०-१९२ ॥
विशेषार्थ -- - नरक और देवगतिमे एक कपायसे उपयुक्त, अथवा दो कपायसे उपयुक्त, अथवा तीन कषायसे उपयुक्त, अथवा चारो कपायोसे उपयुक्त जीव पाये जाते हैं । इसका कारण यह है कि नरकगतिमे क्रोधकपायसे उपयुक्त जीवराशि कालकी अधिकता से सबसे अधिक पाई जाती है । इसी प्रकार देवगतिमे भी लोभकपायसे उपयुक्त जीवरात्रि सबसे अधिक पाई जाती है । इसलिए इन दोनो गतियोंमें एक कपायसे उपयुक्त विकल्प पाया जाता है ।
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१ एक्केण उवएसेण अपवाइज तेणुवएसेणेत्ति वृत्त होइ । जयध०