________________
कसाय पाहुड सुत्त
[ ७ उपयोग अर्थाधिकार
३०१. जत्तिया एकम्मि ट्ठाणे उक्कस्मेण जीवा तत्तिया चेव अण्णम्हि द्वाणे । एवमसंखेज्जलो गट्ठाणि । एदेसु असंखेज्जेसु लोगेसु हाणेसु जवमज्झं । ३०२. तदो अण्ण डाणमेकेण जीवेण हीणं । ३०३. एवमसंखेज्जलोगट्टाणाणि तुल्लजीवाणि । ३०४. एवं सेसेसु विट्ठाणेसु जीवा वेदव्वा ।
३०५. जण्णए कसादयद्वाणे चत्तारि जीवा, उकस्सए कसायुदयहाणे दो जीवा' । ३०६. जवमज्झ जीवा आवलियाए असंखेज्जदिभागो । ३०७. जवमज्झजीवाणं जत्तियाणि अद्धच्छेदणाणि तेसिपसंखेज्जदिभागो हेडा जवमज्झस्स गुणहाणिट्ठाणंतराणि । तेसिमसंखेज्जभागमेत्ताणि उचरि जवमन्झस्स गुणहाणिट्ठाणंतराणि । ३०८. एवं पदुपण तसाणं जवमयं ।
५९४
चूर्णिसू ० - एक कषायोदयस्थानपर उत्कर्षसे जितने जीव होते हैं, उतने ही जीव दूसरे अन्य स्थानपर भी पाये जाते हैं । इस प्रकार यह क्रम असंख्यात लोकप्रमाण कषायोदयस्थानो तक चला जाता है । इन असंख्यात लोकप्रमाण स्थानपर यवमध्य होता है । तदनन्तर अन्य स्थान एक जीवसे हीन उपलब्ध होता है । इस प्रकार असंख्यात लोकप्रमाण कषायो - दयस्थान तुल्य जीववाले होते हैं । अर्थात् उन स्थानोपर समान जीव पाये जाते हैं । इसी प्रकार शेष स्थानोपर भी जीवोका अवस्थान ले जाना चाहिए । अर्थात् जघन्य स्थान से लेकर यवमध्यतक जिस क्रमसे वृद्धि होती है, उसी प्रकार यवमध्यसे ऊपर हानिका क्रम जानना चाहिए || ३०१-३०४ ॥
अब इसी अर्थ-विशेषको संदृष्टि द्वारा बतलानेके लिए चूर्णिवार उत्तर सूत्र कहते हैंचूर्णि ०. ० - जघन्य कषायोदयस्थानपर चार जीव हैं और उत्कृष्ट कषायोदयस्थानपर दो जीव हैं ॥ ३०५ ॥
भावार्थ - यद्यपि जघन्य भी कषायोदयस्थानपर वस्तुतः आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव हैं और उत्कृष्ट कषायोदयस्थानपर भी । पर यहाँ अंकसंदृष्टिमें उक्त अर्थंका बोध कराने के लिए चार और दोकी कल्पना की गई है ।
चूर्णिसू० - यवमध्यवर्ती जीव आवलीके असंख्यातवे भागप्रमाण है । यवमध्यवर्ती जीवोके जितने अर्धच्छेद होते हैं, उनके असंख्यातवें भागप्रमाण यवमध्य के अधस्तनवर्ती गुणहानिस्थानान्तर है और उन अर्धच्छेदोके असंख्यात बहुभागप्रमाण यवमध्यके ऊपर गुणहानि - स्थानान्तर होते हैं । इस प्रकार त्रसजीवोके कषायोदयस्थानसम्बन्धी यवमध्य निष्पन्न हो जाता है ॥ ३०६-३०८ ॥
१ जइ वि जहण्णए कसायुदयठाणे आवलियाए असखेज दिभागमेत्ता जीवा होंति; तो वि सदटूट्ठीए तेसिं पमाण चत्तारिरूवमेत्तमिदि घेत्तव्वं । उक्कस्साए वि कसागुदयट्ठाणे दो जीवा त्ति सदिट्ठीए
गव्वा । जयघ
ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'उक्कस्सेण' के स्थानपर 'उक्कस्सिया' पाठ मुद्रित है। * ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'असंखेजदिभागा' पाठ मुद्रित है ।