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गा०६९] कषाय-त्रिविध श्रेणी-निरूपण
५९५ । ३०९. एसा सुत्तविहासा । ३१०. सत्तमीए गाहाए पडमस्स अद्धस्स अत्थविहासा समत्ता भवदि। . . • ३११ एत्तो विदियद्धस्स अत्थविहासा कायव्वा । ३१२ तं जहा । ३१३. 'परमममयोवजुत्तेहिं चरिमसमए च बोद्धव्या' त्ति एत्थ तिष्णि सेडाओ। ३१४. तं जहा । ३१५. विदियादिया पडमादिया चरिमादिया (३)।
विशेषार्थ-यहाँ यह आशंका नहीं करना चाहिए कि त्रसजीवोंके समान स्थावरजीवोंमें भी यवमध्यरचना क्यो नहीं बतलाई ? इसका समाधान यह है कि स्थावरजीवोंके योग्य बताये गये कषायोदयस्थानोमेसे एक-एक कषायोदयस्थानपर अनन्त जीव पाये जाते है. इमलिए उनकी यवमध्यरचना अन्य प्रकारसे होती है। अतएव मूलगाथासूत्र में जो कषायोदयस्थानोके विरहित-अविरहितका वर्णन है, वह सजीवों की अपेक्षासे जानना चाहिए ।
चूर्णिम०-यह मूलगाथासूत्रकी विभाषा है इस प्रकार इस उपयोग अधिकारकी सातवीं गाथाके पूर्वार्धकी अर्थ-व्याख्या समाप्त होती है ॥३०९-३१०॥
___ चूर्णिसू०-अब इससे आगे उक्त सातवीं गाथाके द्वितीय-अर्ध अर्थात् उत्तरार्धकी अर्थविभाषा करना चाहिए। वह इस प्रकार है ।-'प्रथम समयमे उपयुक्त जीवोके द्वारा और अन्तिम समयमे उपयुक्त जीवोके द्वारा स्थानोको जानना चाहिए' सातवीं गाथाके इस उत्तरार्धमे तीन श्रेणियाँ प्रतिपादन की गई हैं। वे इस प्रकार हैं द्वितीयादिका श्रेणी, प्रथमादिका श्रेणी और चरमादिका श्रेणी ॥३११-३१५॥
विशेषार्थ-श्रेणी नाम एक प्रकारकी पंक्ति या क्रम-परिपाटी का है। प्रकृतमें यहाँ श्रेणी पदसे अल्पबहुत्व पद्धतिका अर्थ ग्रहण किया गया है। जिस अल्पबहुत्व-परिपाटीमें मान संज्ञित दूसरी कषायसे उपयुक्त जीवोको आदि लेकर अल्पबहुत्वका वर्णन किया गया है, उसे द्वितीयादिका श्रेणी कहते हैं । यह मनुष्य और तिर्य बोकी अपेक्षा वर्णन की गई है, क्योकि इनमें ही मानकषायसे उपयुक्त जीव सबसे कम पाये जाते है । जिस अल्पबहुत्व परिपाटीमें क्रोधनामक प्रथम कपायसे उपयुक्त जीवोको आदि लेकर अल्पबहुत्वका वर्णन किया गया है, उसे प्रथमादिका श्रेणी कहते हैं । यह देवोंके ही सम्भव है, क्योकि, वहाँ ही क्रोधकषायसे उपयुक्त जीव सबसे कम पाये जाते हैं। तथा जिस अल्पवहुत्वश्रेणीका लोभनामक अन्तिम कषायसे प्रारम्भ किया गया है, उसे चरमादिका श्रेणी कहते है। यह नारकियोकी अपेक्षा जानना चाहिए, क्योकि नरकगतिमे ही लोभकषायसे उपयुक्त जीव सबसे कम पाये जाते हैं। इस प्रकार इन तीनो श्रेणियोका वर्णन इस सूत्र-गाथाके उत्तरार्धमें किया गया है । दो श्रेणियोका नामोल्लेख तो सूत्रमें किया ही गया है और गाथा पठित 'च' शब्दसे द्वितीयादिका श्रेणीकी सूचना की गई है, ऐसा अर्थ यहाँ समज्ञना चाहिए ।