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गा० ६९] कषायोपयोग-अल्पबहुत्व-निरूपण
५७५ संखेज्जा । १३९. जम्हि पायोवजोगा संखेज्जा तम्हि कोहोवजोगा माणोवजोगा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा । १४०. लोभोवजोगा णियमा संखेजा । १४१. जत्थ लोभोवजोगा संखेज्जा तत्थ कोहोवजोगा माणोवजोगा मायोवजोगा भजियव्वा । १४२. जत्थ णिरयभवग्गहणे कोहावजोगा असंखेज्जा. तत्थ सेसा सिया संखेज्जा, सिया असंखेज्जा । १४३. जत्थ माणोवजोगा असंखेज्जा तत्थ कोहोवजोगा णियमा असंखेज्जा। १४४. सेसा भजियव्वा । १४५. जत्थ मायोवजोगा असंखेज्जा तत्थ कोहोबजोगा माणोवजोगा णियमा असंखेज्जा । १४६. लोभोवजोगा भजियव्या। १४७ जत्थ लोहोवजोगा असंखेज्जा तत्थ कोह-माण-मायोवजोगा णियमा असंखेज्जा ।
भवमे क्रोधकषायके उपयोग-वार और मानकषायके उपयोगवार संख्यात भी होते हैं और असंख्यात भी होते है ॥१३८-१३९
विशेषार्थ-इसका कारण यह है कि मायाकपायके उपयोग-बार उत्कृष्ट संख्यातप्रमाण होनेपर तो क्रोध और मानकपायके उपयोग-बार असंख्यात ही पाये जावेंगे । किन्तु उससे संख्यात-गुणित-हीन मायाके उपयोग-वार होनेपर क्रोध और मानके उपयोग-वार संख्यात ही पाये जाते है।
चूर्णिसू०-नरकगतिके जिस भवग्रहणमे मायाकषायके उपयोग-वार संख्यात होते है, उस भवमे लोभकषायके उपयोग-वार नियमसे संख्यात ही होते हैं। नारकीके जिस भवग्रहणमे लोभकषायके उपयोग-बार संख्यात होते है, उस भवमे क्रोधके उपयोग-वार, मानके उपयोगके वार और मायाके उपयोग-वार भाज्य हैं, अर्थात् संख्यात भी होते हैं और असंख्यात भी होते हैं । नारकीके जिस भवग्रहणमे क्रोधकपायके उपयोग-बार असंख्यात होते है, उस भवमें शेष कपायोंके उपयोग-वार संख्यात भी होते हैं और असंख्यात भी होते है । नारकीके जिस भवग्रहणमे मानकषायके उपयोग-वार असंख्यात होते हैं, उस भवमे क्रोधकषायके उपयोग-बार नियमसे असंख्यात होते है। नारकीके जिस भवग्रहणमें मानकपायके उपयोग-वार असंख्यात होते हैं, उस भवमे शेष अर्थात् माया और लोभकपायके उपयोग-बार भाज्य है, अर्थात् संख्यात भी होते हैं और असंख्यात भी होते हैं। नारकीके जिस भवग्रहणमें मायाकषायके उपयोग-वार असंख्यात होते है, उस भवमे क्रोधकपायके उपयोग-बार और मानकषायके उपयोग-वार नियमसे असंख्यात होते हैं । नारकीके जिस भवग्रहणमे मायाकषायके उपयोगवार असंख्यात होते है, उस भवमें लोभकपायके उपयोग-वार भाज्य है, अर्थात् संख्यात भी होते हैं और असंख्यात भी । नारकीके जिस भवग्रहणमे लोभकपायके उपयोग-वार असंख्यात होते हैं, उस भवमे क्रोध, मान और मायाकषायके उपयोग-वार नियमसे असंख्यात होते है ॥१४२-१४७॥