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फसाय पाहुड सुत्त [७ उपयोग अर्थाधिकार असंखेज्जेहि मायागरिसेहिं अदिरेगेहिं गदेहि माणागरिसेहि कोधागरिसा अदिग्गा होदि ।
११०. एवमोघेण । १११. एवं तिरिक्खजोणिगदीए मणुमगदीए च । ११२. णिरयगईए कोहो माणो, कोहो माणो त्ति वारसहस्साणि परियत्तिदूण सई माया
चूर्णिमू०-असंख्यात माया-अपकोंके अतिरिक्त हो जाने पर मान-अपकर्पकी अपेक्षा क्रोध-अपकर्प अतिरिक्त होता है ॥१०९॥
विशेपार्थ-ऊपर जिस क्रमसे लोभ और मायाकषाय-सम्बन्धी अतिरिक्त अपकर्पका निरूपण किया है, उसी क्रमसे असंख्यात माया-अपकोंके हो जानेपर एक वार क्रोध-अपकर्प अधिक होता है । अर्थात् अवस्थित परिपाटी-क्रमसे लोभ, माया और क्रोधसे उपयुक्त होनेके पश्चात् क्रम-प्राप्त मानकपायसे उपयुक्त न होगा, किन्तु पुनः लौटकर क्रोधकषायसे उपयुक्त होगा। इस प्रकार क्रोधकषायके अपकर्प भी असंख्यात होते हैं । विवक्षित मनुष्य या तिर्यचकी असंख्यात वर्षवाली आयुमे ये अतिरिक्त वार लोभकषायके सबसे अधिक होते है और माया, क्रोध और मानके उत्तरोत्तर कम होते हैं।
चूर्णिसू०-इस प्रकार यह कपाय-सम्वन्धी उपयोग परिपाटी-क्रम ओघकी अपेक्षा कहा गया है । इसी प्रकार तिर्यंचयोनियोकी गतिमे और मनुष्यगतिमें जानना चाहिए ॥११०-१११॥
विशेषार्थ-यद्यपि यहाँ सामान्यसे ही तिर्यंच और मनुष्योका उल्लेख किया गया है, तथापि उक्त क्रम असंख्यात वर्षकी आयुवाले मनुष्य और तिर्यंचोकी अपेक्षासे ही कहा गया जानना चाहिए। इसका कारण यह है कि लोभादि कपायोके असंख्यात वार सदृश होकर जब तक व्यतीत नहीं हो जाते हैं, तब तक उनके अतिरिक्त वार नहीं होते हैं । इस प्रकार सूत्रका वचन है। अतः यही निष्कर्ष निकलता है कि संख्यात-वर्षायुष्क मनुष्य और तिर्यचोमे कषायोके परिवर्तन-बार समान ही होते हैं।
चूर्णिस०-नरकगतिमे क्रोध, मान, पुनः क्रोध और मान, इस क्रमसे सहतो परिवर्तन-वारोके परिवर्तित हो जाने पर एक वार मायाकपाय-सम्बन्धी उपयोग परिवर्तित होता है ॥११२॥
विशेपार्थ-जिस प्रकार ओघप्ररूपणामे लोभ, माया क्रोध और मान इस अवस्थित परिपाटीसे असंख्यात अपकर्षों के व्यतीत होनेपर पुनः अन्य प्रकारकी परिपाटी आरंभ होती है, वैसी परिपाटी यहाँ नरकगतिमें नहीं है । किन्तु यहॉपर क्रोधकपाय-सम्बन्धी उपयोगके परिवर्तित होनेपर मानकपायरूप उपयोग होता है। उसके पश्चात् पुनः क्रोध और मानकपायरूप उपयोग होता है । नारकियोका यही अवस्थित उपयोग-परिवर्तन क्रम है । इम
१ एद सन्व पि असखेज्जवस्साउअतिरिक्ख-मणुस्से अस्सियूण परूविद | सखेजवरसाउअतिरिक्ख. मणुसे अस्सियूण जइ वुच्चइ तो कोहमाणमायालोहाणमागरिसा अण्णोण्ण पेक्खियण सरिसा चंब हचति । कि कारणं, असंखेज्जपरिवत्तणवारा सरिसा होदूण जाव ण गदा ताव लोभादीणमागरिमा अहिया ण होति त्ति
सुत्तवयणादा। जयध०