________________
५७२
फसाय पाहुड लुत्त [७ उपयोग अर्थाधिकार ११६. एदीए परूवणाए एक्कम्हि भवग्गहणे णिरयगदीए संखेज्जवासिगे वा असंखेज्जवासिगे वा भवे लोभागरिसा थोवा । ११७. मायागरिसा संखेज्जगुणा । ११८. माणागरिसा संखेज्जगुणा । ११९. कोहागरिसा विसेसाहिया ।
१२०. देवगदीए कोधागरिसा थोवा । १२१. माणागरिसा संखेज्जगुणा । है । क्योकि, देवगतिमें अप्रशस्त क्रोधपरिणाम प्रायः सम्भव नहीं है। इस प्रकारसे उक्त परिवर्तन-क्रम देवोके अपनी आयुके अन्तिम समय-पर्यन्त होता रहता है।
चूर्णिसू०-इस उपयुक्त प्ररूपणाके अनुसार एक भवके ग्रहण करनेपर नरकगतिमें संख्यात वर्पवाले अथवा असंख्यात वर्षवाले भवमे लोभकषायके परिवर्तन-वार शेष कपायोके परिवर्तन-बारोकी अपेक्षा सबसे कम है ॥११६॥
विशेषार्थ-इसका कारण यह है कि नरकगतिमे लोभकषायके परिवर्तन-वार अत्यन्त कम पाये जाते है।
___ चूर्णिस०-मायाकषायसम्बन्धी परिवर्तन-वार, लोभकपायसम्बन्धी परिवर्तन-वारोसे संख्यातगुणित हैं ॥११७॥
विशेपार्थ- इसका कारण यह है कि एक-एक लोभपरिवर्तन-बारमे संख्यात सहस्र मायाकषायके परिवर्तन-वार पाये जाते हैं।
चूर्णिस०-नरकगतिमे सानकषायसम्बन्धी परिवर्तन वार, मायाकपायसम्बन्धी परिवर्तन-वारोसे संख्यातगुणित है ॥११८॥
विशेपार्थ-इसका कारण यह है कि एक-एक मायापरिवर्तन-धारमें संख्यात सहरू मानकषायके परिवर्तन-वार पाये जाते हैं ।
चूर्णिसू०-नरकगतिमें क्रोधकपायसम्बन्धी परिवर्तन-वार, मानकषायसम्बन्धी परिवर्तन-वारोसे विशेष अधिक हैं ।। ११९॥
विशेपार्थ-इसका कारण यह है कि मानपरिवर्तन-वारोकी अपेक्षा लोभ और माया परिवर्तनोके प्रमाणसे क्रोधपरिवर्तनके वार विशेप अधिक पाये जाते हैं।
चूर्णिसू०-देवगतिमे क्रोधकपाय-सम्बन्धी उपयोगपरिवर्तन-बार वहॉके शेप कपायोके परिवर्तन-वारोकी अपेक्षा सबसे कम है ॥१२०॥
विशेषार्थ-इसका कारण यह है कि देवगतिमें क्रोधकपायके परिवर्तन-बार अत्यन्त अल्प पाये जाते हैं।
चूर्णिस०-देवगतिमे मानकपायसम्बन्धी परिवर्तन-बार, क्रोध-कपायसम्बन्धी परिवर्तन-बारोसे संख्यातगुणित हैं ॥१२१॥
विशेषार्थ-इसका कारण यह है कि एक-एक क्रोध-परिवर्तन-वारमें संख्यात सहन मानकपायके परिवर्तन-वार पाये जाते हैं ।
१ कुटो एदेसिं थोवत्तमिदिचे णिरयगदीए लोभपरियणवाराण सुटु विरलाणमुबलमादो । जयघ०