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गा० ६९] कषायोपयोगकाल-अल्पबहुत्व-निरूपण
५६७ पज्जत्तयस्स उक्कस्सिया कोधद्धा विसेसाहिया । ८३. चउ रिंदियपजत्तयस्स उक्कस्सिया कोधद्धा विसेसाहिया।
८४. बेइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया मायद्धा विसेसाहिया । ८५. तेइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया मायद्धा विसेसाहिया । ८६. चउरिंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया मायद्धा विसेसाहिया।
८७. बेईदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया लोभद्धा विसेसाहिया । ८८ तेइ दियपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया लोभद्धा विसेसाहिया । ८९. चउरिंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया लोभद्धा विसेसाहिया ।
९०. असण्णि-अपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया माणद्धा संखेज्जगुणा । ९१. तस्सेव उस्कस्सिया कोधद्धा विसेसाहिया । ९२. तस्सेव उक्कस्सिया मायद्धा विसेसाहिया । ९३. तस्सेव उक्कस्सिया लोभद्धा विसेसाहिया ।।
९४. असण्णिपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया माणद्धा संखेज्जगुणा । ९५. तस्सेव उक्कस्सिया कोधद्धा विसेसाहिया । ९६. तस्सेव उक्कस्सिया मायद्धा विसेसाहिया । पर्याप्त जीवके उत्कृष्ट क्रोधकालसे विशेष अधिक है । चतुरिन्द्रियपर्याप्त जीवके क्रोधका उत्कृष्टकाल त्रीन्द्रियपर्याप्त जीवके उत्कृष्ट क्रोधकालसे विशेष अधिक है ॥८१-८३॥
चूर्णिसू०-द्वीन्द्रियपर्याप्त जीवके मायाका उत्कृष्टकाल चतुरिन्द्रियपर्याप्त जीवके उत्कृष्ट क्रोधकालसे विशेष अधिक है। त्रीन्द्रियपर्याप्त जीवके मायाका उत्कृष्टकाल द्वीन्द्रियपर्याप्त जीवके उत्कृष्ट मायाकालसे विशेष अधिक है। चतुरिन्द्रियपर्याप्त जीवके मायाका उत्कृष्टकाल त्रीन्द्रियपर्याप्त जीवके उत्कृष्ट मायाकालसे विशेष अधिक है ।।८४-८६॥
चूर्णिमू-द्वीन्द्रियपर्याप्त जीवके लोभका उत्कृष्टकाल चतुरिन्द्रियपर्याप्त जीवके उत्कृष्ट मायाकालसे विशेष अधिक है। त्रीन्द्रिय पर्याप्त जीवके लोभका उत्कृष्टकाल द्वीन्द्रिय पर्याप्त जीवके उत्कृष्ट लोभकालसे विशेष अधिक है। चतुरिन्द्रियपर्याप्त जीवके लोभका उत्कृष्टकाल त्रीन्द्रियपर्याप्त जीवके उत्कृष्ट लोभकालसे विशेष अधिक है ॥८७-८९॥
चूर्णिम०--असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवके मानका उत्कृष्ट काल चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीवके उत्कृष्ट लोभकालसे संख्यातगुणा है। उसी असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवके क्रोधका उत्कृष्टकाल उसीके उत्कृष्ट मानकालसे विशेष अधिक है। उसी असंज्ञी पंचेन्द्रियअपर्याप्त जीवके मायाका उत्कृष्टकाल उसीके उत्कृष्ट क्रोधकालसे विशेष अधिक है। उसी असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवके लोभका उत्कृष्ट काल उसीके उत्कृष्ट मायाकालसे विशेष अधिक है ॥९०-९३॥
चूर्णिसू०-असंज्ञी पर्याप्त पंचेन्द्रियजीवके मानका उत्कृष्टकाल असंज्ञी अपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवके उत्कृष्ट लोभकालसे संख्यातगुणा है । उसी असंज्ञी पर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवके क्रोधका उत्कृष्टकाल उसीके उत्कृष्ट मानकालसे विशेप अधिक है। उसी असंज्ञी पर्याप्त