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कलाय पाहुड सुत्त
[६ वेदक अर्थाधिकार रणा संकमो च असंखेज्जगुणो'। ५५९. जहण्णगो द्विदिवंधो संखेज्जगुणों । ५६०. जढिदिवंधो विसेसाहियो ।
५६१. इत्थि-णqसयवेदाणं जहण्णट्ठिदिसंतकम्ममुदयोदीरणा च थोवाणि । ५६२. जहिदिसंतकम्मं जट्टिदि-उदयो च तत्तियो चेव । ५६३. जहिदि-उदीरणा असंखेज्जगणा । ५६४. जहण्णगो हिदिसंकमो असंखेज्जगुणो । ५६५. जहण्णगो द्विदिबंधो असंखेज्जगुणों।
५६६. पुरिसवेदस्स जहण्णगो डिदि-उदयो द्विदि-उदीरणा च थोवा । ५६७. ग्रहण किया गया है । ) लोभसंज्वलनके जघन्य स्थितिवन्धसे उसीका यस्थितिक बन्ध विशेष अधिक है। (क्योकि, यहाँ पर उसमे जघन्य आबाधाकाल भी सम्मिलित हो जाता है।) ||५५६-५६०॥
चूर्णिस०-स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जघन्य स्थिति-सत्कर्म, जघन्य स्थिति-उदय और जघन्य स्थिति-उदीरणा ये तीनो परस्परमे समान हैं और वक्ष्यमाण पदोकी अपेक्षा सबसे कम है। ( क्योकि, उनका प्रमाण एक स्थितिमात्र है । स्त्री और नपुंसक वेदका जघन्य यस्थितिकसत्कर्म और जघन्य यत्स्थितिक उदय भी उतना अर्थात् एक स्थितिप्रमाण ही है । स्त्री और नपुंसक वेदके जघन्य यस्थितिक-सत्कर्म और जघन्य यत्स्थितिक-उदयसे उन्हींकी जघन्य यस्थितिक-उदीरणा असंख्यातगुणी है । ( क्योकि, उसका प्रमाण एक समय अधिक आवलीकाल है । ) स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी जघन्य यस्थितिक-उदीरणासे उसीका जघन्य स्थिति-संक्रमण असंख्यातगुणा है। ( क्योकि, उसका प्रमाण पल्योपमके असंख्यातवे भाग है । ) स्त्री और नपुंसकवेदके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे उन्हींका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । ( क्योकि, पल्योपमके असंख्यातवे भागसे हीन सागरोपमके दो वटे सात (३) भागप्रमाण एकेन्द्रियोके स्त्री और नपुंसकवेद-सम्बन्धी जघन्य स्थितिबंधको यहाँ ग्रहण किया गया है ।।५६१-५६५।।
___ चूर्णिस०-पुरुषवेदका जघन्य स्थिति-उदय और जघन्य स्थिति-उदीरणा सवसे कम हैं । ( क्योकि, वह एक स्थिति-प्रमाण है । ) पुरुषवेदका यत्स्थितिक-उदय भी उतना ही है,
१ कुदो; समयाहियावलियपमाणत्तादो । जयध० २ किं कारण, अणियट्टिकरणचरिमटिदिबधस्स अतोमुहुत्तपमाणस्सावाहाए विणा गहिदत्तादो।
जयध० ३ कुदो; जहण्णावाहाए वि एस्थतभावदसणादो । जयध० ४ कुदो एगठिदिपमाणत्तादो । जयघ० ५ किं कारण; एत्य जझिदीए जद्दण्णट्टिदीदो भेदाणुवलभादो । जयध० ६ कुदो; समयाहियावलियपमाणत्तादो । जयध० ७ कुदो पलिदोवमासंखेजदिमागमेत्तचरिमफालिविसयत्तादो। जयध० रइदियजा
घस्स पल्टिोवमासंखेज्जभागपरिट्टीणसागरोवम-वे-सत्तमागपमाणस्स गद्दणादो । जयध
९ कुदो; एगद्विदिपमाणत्तादो । जयध०