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गा० ६९] उपयोग-अनुयोगद्वार-गाथासूत्र-समुत्कीर्तना (१५) जे जे जम्हि कसाए उवजुत्ता किण्णु सूदपुव्वा ते ।
होहिति च उवजुत्ता एवं सव्वत्थ बोद्धव्वा ॥६८॥ (१६) उवजोगवगणाहि च अविरहिदं काहि विरहिदं चावि ।
पढमसमयोवजुत्तेहि चरिममम ए च बोद्धव्वा (७) ॥६९॥
विशेषार्थ-इस गाथाके द्वारा कपायोपयुक्त जीवोके विशेष परिज्ञानके लिए आठ अनुयोगद्वारोकी सूचना की गई है । 'केवडिया उवजुत्ता' इस पदके द्वारा द्रव्यप्रमाणानुगम अनुयोगद्वार सूचित किया गया है। तथा इसी पदके द्वारा सत्प्ररूपणाकी भी सूचना की गई है । क्योकि सत्प्ररूपणाके विना द्रव्यप्रमाणानुमगकी प्रवृत्ति नही हो सकती है। क्षेत्र-अनुयोगद्वार और स्पर्शन-अनुयोगद्वार भी इसी पदसे संगृहीत समझना चाहिए । क्योकि, उन दोनो अनुयोगद्वारोकी प्रवृत्ति द्रव्यप्रमाणानुगम-पूर्वक ही होती है। इस प्रकार गाथासूत्रके इस प्रथम अवयवमे चार अनुयोगद्वार अन्तर्निहित है। 'सरिसीसु च वग्गणाकसाएसु' इस द्वितीय सूत्रावयवके द्वारा नाना और एक जीव-सम्बन्धी कालानुगम अनुयोगद्वारकी सूचना की गई है । तथा यही पर अन्तरानुगम अनुयोगद्वारका भी अन्तर्भाव जानना चाहिए । क्योकि, काल और अन्तर ये दोनो अनुयोगद्वार परस्परमे सम्बद्ध ही देखे जाते हैं । 'केवडिया च कसाए' इस तृतीय सूत्रावयवसे भागाभागानुगम अनुयोगद्वार कहा गया है । 'के के च विसिस्सदे केण' इस चतुर्थ सूत्रावयवसे अल्पबहुत्व अनुयोगद्वार सूचित किया गया है। इस गाथामे द्रव्यानुगम, कालानुगम, भागाभागानुगम और अल्पवहुत्वानुगम ये चार अनुयोगद्वार तो स्पष्ट कहे ही गये हैं, तथा शेष चार अनुयोगद्वारोकी सूचना की गई है ।
जो जो जीव वर्तमान समय में जिस क्रोधादि किसी एक कपायमें उपयुक्त दिखलाई देते हैं, वे सबके सब क्या अतीत कालमें उसी ही कषायके उपयोगसे उपयुक्त थे, अथवा वे सबके सब आगामी कालमें उसी ही कपायरूप उपयोगसे उपयुक्त होंगे ? इसी प्रकार सर्वत्र सर्व मार्गणाओंमें जानना चाहिए ॥६८॥
विशेषार्थ-इस गाथाके द्वारा वर्तमान समयमे क्रोधादि कपायोसे उपयुक्त अनन्त जीवोकी अतीत और अनागत कालमे भी विवक्षित कपायोपयोगके परिणमन-सम्बन्धी सम्भव असम्भव भावोकी गवेपणा की गई है । गाथाके प्रथम तीन चरणोके द्वारा ओघप्रपरूणा और चतुर्थ चरणके द्वारा आदेशप्ररूपणा सूचित की गई है। इसका निर्णय आगे चूर्णिकार स्वयं करेंगे।
कितनी उपयोग-वर्गणाओंके द्वारा कौन स्थान अविरहित पाया जाता है और कौन स्थान विरहित ? तथा प्रथम समयमें उपयुक्त जीवोंके द्वारा और इसी प्रकार अन्तिम समयमें उपयुक्त जीवोंके द्वारा स्थानोंको जानना चाहिये (७)॥६९॥
१ एत्थ गाहासुत्तपरिसमत्तीए सत्तण्हमकविण्णासो किमट्ट कदो ? एदाओ सत्त चेव गाहाओ उवजोगाणिओगद्दारे पडिबद्धाओ त्ति जाणावणट्ठ । जयध०