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कसाय पाहुड सुत्त
[ ७ उपयोग अर्थाधिकार
३. एदाओ सत्त गाहाओ । ४. एदासिं विहासा' कायव्वा । ५. 'केवचिरं उवजोगो कम्हि कसायम्हि' ति एदस्स पदस्स अत्थो अद्धापरिमाणं । ६. तं जहा । ७. कोद्धा माणद्धा मायद्धा लोहद्धा जहण्णियाओ वि उक्कस्सियाओ वि अंतोमुहुतं ।
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विशेषार्थ - उपयोग वर्गणाऍ दो प्रकारकी होती हैं- कपाय - उदयस्थानरूप और उपयोग- अध्वस्थानरूप । इन दोनोमे ही कितने कालोपयोग वर्गणावाले जीवोंसे और कितने भावोपयोगवर्गणावाले जीवोसे कौन स्थान अशून्य और कौन स्थान शून्य पाया जाता है, इस प्रकारके शून्य- अशून्य स्थानोंका ओघ और आदेशकी अपेक्षा निरूपण करनेकी सूचना गाथा के पूर्वार्धसे की गई है । तथा गाथाके उत्तरार्ध- द्वारा नरक आदि गतियोंका आश्रय करके क्रोधादि कषायोपयोगयुक्त जीवोके तीन प्रकारकी श्रेणियोके द्वारा अल्पबहुत्वकी सूचना की गई है, जिसका निर्णय चूर्णिसूत्रकार आगे स्वयं करेंगे । इस उपयोग अधिकारमे सात ही सूत्रगाथाएं निवद्ध है, यह सूचित करने के लिए चूर्णिकारने गाथाके अन्त में सातका अंक स्थापित किया है ।
चूर्णिसू० - ये सात सूत्र - गाथाऍ कसायपाहुडके उपयोग नामक सातवें अर्थाधिकारमें प्रतिबद्ध है । अब इन सातो गाथाओकी विभाषा करना चाहिए ॥ ३-४ ॥
विशेषार्थ - गाथा - सूत्रसे सूचित अर्थका नाना प्रकारसे व्याख्यान, विवरण या विवेचन करनेको विभाषा कहते है । चूर्णिकार अब इन गाथासूत्रोंकी विभापा करेंगे । चूर्णिसू० - ' किस कषाय में कितने काल उपयोग रहता है' इस पदका अर्थ अद्धापरिमाण है ॥५॥
विशेषार्थ - अद्धा नाम कालका है । कालके परिमाणको अद्धापरिमाण कहते हैं । जिसका अभिप्राय यह है कि एक जीवका किस कपायमे कितने काल तक उपयोग रहता है ? चूर्णिसू० - उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है - क्रोधकपाथका काल, मानकपायका काल, मायाकपायका काल, और लोभकषायका काल जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त है ॥ ६-७॥
विशेषार्थ - चारो ही कषायोका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त ही बतलाया गया है । इसका कारण यह है कि किसी भी कपायका एक सदृश उपयोग अन्तर्मुहूर्त से अधिक नही हो सकता है, क्योकि उसके बाद कषायोके उपयोग- परिवर्तनके विना अवस्थान असम्भव है । यद्यपि मरण और व्याघातकी अपेक्षा कपायोके उपयोगका जघन्यकाल 'जीवस्थान' आदि ग्रन्योमे एक समयमात्र भी कहा गया है, किन्तु चूर्णिसूत्रकारके अभिप्राय से वैसा होना सम्भव नहीं है |
१ का विहासा णाम ? गाहासुत्तसूचिदस्य अत्थस्स विसेसियूण भासण विहासा विवरणमिदि वुत्त होइ | जयघ