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गा० ६२ ]
अनुभागापेक्षया बन्धादि - पंचपद - अल्पबहुत्व-निरूपण
उदीरणा च अनंतगुणाणि । ५९४. एवं माण - मायासं जलणाणं ।
५९५ लाहसंजलणस्स जहण्णगो अणुभाग- उदयो संतकम्मं च थोवाणि' | ५९६. जहणिया अणुभाग- उदीरणा अनंतगुणा । ५९७. जहण्णगो अणुभागसंकमो अनंतगुणो' । ५९८. जहण्णगो अणुभागबंधो अनंतगुणा ।
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संज्वलनक्रोधके जघन्य अनुभागबन्ध आदिसे उसीके जघन्य अनुभाग - उदय और जघन्य अनुभाग- उदीरणा अनन्तगुणित है ॥५९२ ५९३ ॥
विशेषार्थ - इ - इसका कारण यह है कि संज्वलनक्रोध - वेदककी प्रथम स्थिति के एक समयाधिक आवलीप्रमाण शेष रह जानेपर जघन्य बन्धके समकालमे ही पुरातन सत्कर्मके उदय और उदीरणारूपसे परिणत हो जानेपर उनका परिमाण जघन्य अनुभागबन्ध आदिके परिमाणसे अनन्तगुणा हो जाता है ।
चूर्णिसू० - इसी प्रकार संज्वलन मान और मायाके अनुभागसम्बन्धी सर्व पदों का अल्पबहुत्व जानना चाहिए ||५९४ ॥
चूर्णिमू० – संज्वलनलोभका जघन्य अनुभाग- उदय और जघन्य अनुभाग-सत्कर्म वक्ष्यमाण सर्व पदोकी अपेक्षा सबसे कम है । ( क्योकि ये दोनों सूक्ष्मसाम्परायिक अपकके अन्तिम समय में पाये जाते है । ) संज्वलनलोभके जवन्य अनुभाग- उदय और जघन्य अनुभाग-सत्कर्मसे उसीकी जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी है । ( क्योकि, यहाॅ सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समयसे समयाधिक आवलीकाल पहले होनेवाले उदयस्वरूप से उदीर्यमाण अनुभागका ग्रहण किया गया है । ) लोभसंज्वलनकी जघन्य अनुभाग- उदीरणासे उसीका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है ॥५९५-५९७ ॥
विशेषार्थ - इसका कारण यह है कि लोभसंज्वलन के उदयसे बहुत नीचे हटकर पतित अनुभागको ग्रहण करनेकी अपेक्षा तो उदीरणा अनन्तगुणित हो जाती है, और उससे भी अनन्तगुणित अपकृष्यमाण अनुभागको ग्रहणकर होनेवाले संक्रमणकी अपेक्षा संज्वलन लोभका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणित हो जाता है ।
चूर्णिसू० -संज्वलन-लोभके जघन्य अनुभाग-संक्रमसे उसीका जघन्य अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है । ( क्योकि, यहॉपर अनिवृत्तिकरण के अन्तिम समय में बादरकृष्टिस्वरूपसे वंधने - वाले अनुभागका ग्रहण किया गया है ॥ ५९८ ॥
१ त जहा - कोधवेदगपढमरिठदीए समयाहियावलियमेत्तरे साए जहण्णय घेण समकालमेव उदयोदीरणाण पि जहणसामित्त जादं । किंतु एसो चिराणसतकम्मसरूवो होदूणाणतगुणा जादा | जयघ०
२ कुद्रो. सुहुमसा ग्राइयखवगचरिमसमयम्मि लद्धजहण्णभावनादो । जयध०
३ किं कारण, तत्तो समयाहियावलियमेत्त हेट्ठा ओसरिदूण तक्कालभाविउदयमरुवेणुदीरिजमाणाणुभागस्स गहणादो । जयध०
४ त कथ; उदीरणा णाम उदयसरूवेण सुठु ओहट्टिदूण पदिदाणुभाग घेण जहणा जादा | सकमो पुण तत्तो अणतगुणोकनमाणाणुभाग घेत्तू जहण्णा जादो । तेण कारणेाणतगुणत्त मेदस्सण विरुज्झद | जयध०
५ कुदो, बादर किट्टिसरूवेणाणियट्टिकरणच रिमसमये बज्झमाणजहण्णाणुभागव धस्स गहणादो | जयघ०