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गा० ६२] प्रदेशापेक्षया बन्धादि-पंचपद-अल्पबहुत्व-निरूपण ५५५
६६४. हस्स-रदि-भय दुगुछाणं जहणिया पदेसुदीरणा थोवा' । ६६५. उदयो असंखेज्जगुणों । ६६६ बंधो असंखेज्जगुणों । ६६७. संकमो असंखेज्जगुणो । ६६८. संतकम्ममसंखेज्जगुणं । एवमप्पाबहुए समत्ते 'जो जं संकायेदि य एदिस्से चउत्थीए सुत्तगाहाए
अत्थो समत्तो होइ। __ तदो वेदगे त्ति समत्तमणिओगद्दारं ।।
चूर्णिसू०-हास्य, रति, भय और जुगुप्सा, इन प्रकृतियोकी जघन्य प्रदेश-उदीरणा सबसे कम है। इनकी उदीरणासे उनका उदय असंख्यातगुणा होता है। उनके उदयसे उनका बन्ध असंख्यातगुणा होता है। उनके बन्धसे उनका संक्रम असंख्यातगुणा होता है और उनके संक्रमसे उनका सत्कर्म असंख्यातगुणा होता है ॥६६४-६६८॥
इस प्रकार प्रदेशबन्ध-सम्बन्धी अल्पबहुत्वके समाप्त होनेके साथ ही 'जो जं संकामेदि य' इस चौथी सूत्रगाथाका अर्थ भी समाप्त होता है।
इस प्रकार वेदक अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
१ कुदो, सव्वुकस्मसकिलिट्रमिच्छाइद्रि-जहणोदीरणदव्वग्गहणादो । जयध०
२ किं कारण , उवसामयपच्छायददेवस्स उदीरणोदयदव्व घेत्तूणावलियचरिमसमये जहण्णसामित्तावलबणादो । जयघ०
३ कुदोः सुहुमणिगोदुववादजोगेण बद्ध जहण्णसमयबद्धपमाणादो । जयध०
४ किं कारण; अपुवकरणावलियपविटठचरिमसमये अधापवत्तस मेण जहण्णभावावल बणादो । एत्थ गुणगागे अखेजाणि पलिद'वमपढमवग्गमूलाणि, जागगुणगारगुणिददिवडगुणहाणीए अधापत्तभागहारेणोवट्टिदाए परदगुणगारुप्पत्तिदसणादो | जयध०
५ को गुणगारा ? अधापवत्तभागहारो। किं कारणं, खदिकम्मसियल क्खणेणागदखवगचरिमफालीए
ड्ढगुणहाणि मेत्तएइदियसमयपबद्ध पडिबडाए पयदजहष्णसामित्तावलबणादो। जयघ०