________________
० ६२ ]
स्थित्यपेक्षया बन्धादि-पंचपद - अल्पबहुत्व-निरूपण
५४१
दिसंकमो विसेसाहिओ' । ५५४. जट्ठिदिसंतकम्मं विसेसाहियं । ५५५ जङ्किदिबंधो विसेसाहिओ ।
५५६. लोहसंजलणस्स जहण्णडिदिसंकमो संतकम्पमुदयोदीरणा च तुल्ला थोवा । ५५७, जट्टिदि उदयो जट्टि दिसंतकम्मं च तत्तियं चेव । ५५८. जडिदि-उदी
उनका प्रमाण क्रमशः आबाघाकाल से हीन दो मास, एक मास और एक पक्ष प्रमाण कहा गया है । ) तीनो संज्वलनोके जघन्य स्थितिबन्ध आदि पदोकी अपेक्षा उन्हीका यत्स्थितिकसंक्रमण विशेष अधिक है । ( यह विशेष अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है, क्योकि यहॉपर समयोन दो आवलीसे हीन जघन्य आबाधाकालका प्रवेश देखा जाता है । ) तीनो संज्वलनोके यत्स्थितिक संक्रमणसे उन्हींका यत्स्थितिक-सत्कर्म विशेष अधिक है । ( यह विशेष एक स्थितिमात्र है | | ) तीनो संज्वलनोंके यत्स्थितिक सत्कर्म से उन्हींका यत्स्थितिक-बन्ध विशेष अधिक है । ( यह विशेष दो समय कम दो आवलीमात्र जानना चाहिए | क्योकि, सम्पूर्ण आबाधाकाल के साथ ही स्थितिबन्धके जघन्यपना माना गया है । ) ।।५४९-५५५ ।।
I
चूर्णिसू० - लोभसंज्वलनका जघन्य स्थितिसंक्रमण, जघन्य स्थितिसत्कर्म, जघन्य उदय और जघन्य उदीरणा ये चारो परस्परमें तुल्य हैं और वक्ष्यमाण पदोकी अपेक्षा सबसे कम हैं । ( क्योकि, इन सबका प्रमाण एक स्थितिमात्र है । ) लोभसंज्वलनका जघन्य यत्स्थितिक-उदय और जघन्य यत्स्थितिक - सत्कर्म भी उतना ही अर्थात् एक स्थितिप्रमाण ही है । लोभसंज्वलन के जघन्य यत्स्थितिक उदय और जघन्य यत्स्थितिक-सत्कर्मसे उसीकी जधन्य यत्स्थितिक उदीरणा और जघन्य यत्स्थितिक संक्रमण असंख्यातगुणित है । ( क्योकि, उनका प्रमाण एक समय अधिक आवलीकाल है ।) लोभसंज्वलनके जघन्य यत्स्थितिक - उदीरणा और जघन्य संक्रमणसे उसीका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । ( क्योकि, अनिवृत्तिकरण गुणस्थानके अन्तिम समयमे होनेवाले आबाधा - विहीन अन्तर्मुहूर्त -प्रमाण स्थितिबन्धको
१ केत्तियमेत्तो विसेसो ? अतोमुहुत्तमेत्तो । कुढो, समयूणदो आवलिया हिं परिहीण - जहण्णावाहाए एत्थ पवेदसणादो । जयध०
२ केत्तियमेत्तो विसेसो ! एगट्ठदिमेत्तो । कि कारण, सकमणावलियाए चरिमसमयम्मि जट्ठिदिसकमो जहण्णो जादो । जट्ठिदिसतकम्म पुण तत्तो हेट्ठिमाणतरसमए वट्टमाणस्स जहण्ण होइ, तेण कारण सकमणावलियाए दुचरिमसमयप्पवेसेण विसेसा हियत्तमेत्थ गहेयत्व | जयघ०
३ केत्तियमेत्तो विसेसो १ दुसमयूणदोआवलियमेत्तो । किं कारण, सपुष्णावाहाए जट्ठिदिवधस्स जहणभावदसणादो | जयध०
४ कुदो, सव्वे सिमेट्ठिदिपमाणत्तादो । त कथ; सुहुमस पराइयस्स समयाहियावलियाए दिट्ठदिसकमो दिट्ठदि उदीरणा च जहणिया होइ । [ तस्सेव चरिमसमए ट्रिट्ठदिसतकम्ममुदयो च जहण्णभाव पडिवजदे। तदो सव्वे सिमेट्ठिदिपमाणत्तादो थोक्त्तमिदि सिद्ध ।
५ किं कारणं, उद्दयत्थ जहण्णट्ठिदीदो जट्ठिदीए भेदाणुवलंभादो । जयध०