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गा० ६२]
अनुभाग-उदीरणा-काल-निरूपण ३१९. अणुक्कस्साणुभागुदीरगंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ३२०जहण्णेण एगसमओ। ३२१. उक्कस्सेण वे छावहिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । ३२२. एवं सेसाणं कम्माणं सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तवज्जाणं । ३२३. णवरि अणुकस्साणुभागुदीरगंतरं पयडिअंतरं कायव्वं । ३२४.सम्पत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्साणुक्कस्साणुभागदीरगंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ३२५. जहण्णेण अंतोमुहुत्त । ३२६. उकस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्ट देसूणं ।
विशेषार्थ-उत्कृष्ट अन्तरका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-कोई एक जीव, संज्ञी पंचेन्द्रियोंमे उत्कृष्ट संक्लेशसे उत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा प्रारम्भ करके अन्तरको प्राप्त होकर एकेन्द्रियोमें उत्पन्न हो, उनकी असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण उत्कृष्ट स्थितिको पालन करके पुनः वहाँसे लौटकर बसोमें उत्पन्न होकर उत्कृष्ट संक्लेशसे उत्कृष्ट अनुभागउदीरणाका पुनः प्रारम्भ करनेवाले जीवमें असंख्यात पुदलपरिवर्तन प्रमाण उत्कृष्ट अन्तरकाल पाया जाता है।
शंका-मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभाग-उदीरकका अन्तरकाल कितना है ? ॥३१९॥
समाधान-जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल सातिरेक दो वार छ थासठ सागरोपम है ॥३२०-३२१॥
विशेषार्थ-मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागउदीरणाके उत्कृष्ट अन्तरकी प्ररूपणा इस प्रकार है--कोई जीव मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता हुआ प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख होकर मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके आवलीमात्र शेष रह जाने पर अनुदीरक बनके अन्तरको प्राप्त हुआ और सम्यक्त्वको उत्पन्न कर तथा सर्वोत्कृष्ट उपशमसम्यक्त्वका काल बिताकर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। वहाँ अन्तर्मुहूर्त कम छ यासठ सागरोपम पूरा करके अन्तमे सम्यग्मिथ्यात्वके उदयसे गिरा और अन्तर्मुहूर्त अन्तरको प्राप्त होकर फिर भी वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होकर और दूसरी बार छयासठ सागरोपम परिभ्रमण करके अन्तर्मुहूर्तकालके शेप रह जानेपर मिथ्यात्वमे जाकर मिथ्याष्टि होनेके प्रथम समयमे मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला हुआ । इस प्रकार सूत्रोक्त अन्तरकाल सिद्ध हो जाता है ।
चूर्णिसू०-इसी प्रकार सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिध्यात्वको छोड़कर शेष कर्मोंकी अनुभाग-उदीरणाके अन्तरकी प्ररूपणा करना चाहिए। केवल अनुत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणाके अन्तरकी प्ररूपणा प्रकृति-उदीरणाकी अन्तर-प्ररूपणाके समान जानना चाहिए ॥३२२-३२३॥
शंका-सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरकका अन्तरकाल कितना है ? ॥३२४॥
समाधान-जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल देशोन अर्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है ॥३२५-३२६॥ पविसिय तदुक्कस्सछिदिमेत्तमुक्कस्सतरमणुपालिय पुणो वि पडिणियत्तिय तसेसु आगतूण पडिवण्णतभा वम्मि तदुवलभादो । जयध०