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कसाय पाहुड सुस्त [६ वेदक अर्थाधिकार ३०७. अणुक्कस्साणुभागुदीरगो केवचिरं कालादो होदि १३०८ जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । ३०९. सेसाणं कम्माणं मिच्छत्तभंगो । ३१०. णवरि अणुक्कस्साणुभागुदीरग-उक्कस्सकालो पयडिकालो कादव्यो ।
३११. एत्तो जहण्णगो कालो । ३१२. सव्वासिं पयडीणं जहण्णाणुभागउदीरगो केवचिरं कालादो होदि १३१३. जहण्णुकस्सेण एगसमओ। ३१४. अजहण्णाणुभागुदीरणा पयडि-उदीरणाभंगो ।
३१५. अंतरं । ३१६. मिच्छत्तस्स उकस्साणुभागुदीरगंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ३१७. जहण्णेण एगसमओ। ३१८. उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा ।
विशेषार्थ-क्योकि, सर्वोत्कृष्ट संक्लेशसे मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टिके चरम समयमे ही सम्यग्मिध्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा होती है ।
शंका-सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणाका कितना काल है ?॥३०७॥
समाधान-जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । (क्योंकि, तीसरे गुणस्थानका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण ही माना गया है ।) ॥३०८॥
__चूर्णिसू०-मोहकी शेप पच्चीस कर्मप्रकृतियोकी अनुभाग-उदीरणाका काल मिथ्यात्वके समान जानना चाहिए। विशेषता केवल यह है कि उक्त पच्चीसो प्रकृतियोकी अनुत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणाके उत्कृष्टकालका निरूपण प्रकृति-उदीरणाके उत्कृष्ट कालके समान करना चाहिए ॥३०९-३१०॥
चूर्णिसू०-अब इससे आगे जघन्य अनुभाग-उदीरणाका काल कहते है ॥३११॥
शंका-मोहकर्मकी सर्वप्रकृतियोके जघन्य-अनुभागकी उदीरणाका कितना काल है ? ॥३१२॥
समाधान-जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है ॥३१३॥
विशेषार्थ-क्योकि, सम्यक्त्व और संयमको एक साथ ग्रहण करके सम्मुख चरमसमयवर्ती मिथ्यावृष्टि ही जघन्य अनुभाग-उदीरणाका स्वामी वतलाया गया है।
चूर्णिसू०-मोहकर्मकी सभी प्रकृतियोके जघन्य अनुभाग-उदीरणाका काल प्रकृतिउदीरणाके कालके समान है ॥३१४॥
चूर्णिसू०-अव एक जीवकी अपेक्षा अनुभाग-उदीरणाके अन्तरको कहते हैं ।।३१५॥ शंका-मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणाका अन्तरकाल कितना है ?॥३१६॥
समाधान-जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन है ॥३१७-३१८॥
१ कुदो; जहण्णुकस्ससम्मामिच्छत्तगुणकालस तप्पमाणत्तादो । जयध०
२ कुदो, उक्कस्सादो अणुकस्समाव गतूणेगसमयमतरिय पुणो वि विदियसमए उकसभावमुवग. चम्मि तदुवलंमादो । जयध०
३ कुदो, सण्णिपचिदिएसुक्कत्ससंकिलेसेणुक्कत्साणुमागुदीरणाए आदि कादूणतरिय एइदिएम