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गा० ६२ ]
प्रदेस - उदीरणा - अल्पबहुत्व-निरूपण
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४६१. अप्पा बहुअं । ४६२ सव्वत्थोवा मिच्छत्तस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरणा' । ४६३. अनंताणुबंधीणमुक्कस्सिया पदे सुदीरणा अण्णदरा तुल्ला संखेज्जगुणा' । ४६४. सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरणा असंखेज्जगुणा । ४६५, अपच्चक्खाणच उक्कस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरणा अण्णदरा तुल्ला असंखेज्जगुणा । ४६६. पच्चक्खाणचउक्कस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरणा अण्णदरा तुल्ला असंखेज्जगुणा । ४६७. सम्मत्तस्स उक्कस्सिया पदेसुदीरणा असंखेज्जगुणा । ४६८. भय-दुर्गुछाणमुक्कस्सिया
है, उसी प्रकार शेष कर्मों के साथ भी जानना चाहिए । तथा इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी प्रत्येक कषायको निरुद्ध करके भी शेप कर्मोंके साथ सन्निकर्पका निरूपण करना चाहिए |
चूर्णिसू० - अब प्रदेश - उदीरणा-सम्बन्धी अल्पबहुत्वको कहते हैं-मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणा सबसे थोड़ी होती है । मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणासे अनन्तानुबन्धी प्रत्येक कषायकी प्रदेश-उदीरणा परस्परमें तुल्य हो करके भी संख्यातगुणी है ॥४६१-४६२॥ विशेषार्थ - इसका कारण यह है कि अनन्तानुबन्धी किसी एक कषायकी उदीरणा होनेपर शेष तीनों कषाय भी स्तिबुकसंक्रमणसे उदयमे प्रवेश कर जाती हैं, अतः मिथ्यात्वकी उदीरणासे अनन्तानुबन्धी कषायोंकी प्रदेश - उदीरणा कुछ कम चौगुनी हो जाती है ।
चूर्णिसू० - अनन्तानुबन्धीकी उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणासे सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशउदीरणा असंख्यातगुणी होती है । सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणासे अप्रत्याख्यानावरणचतुष्ककी प्रदेश-उदीरणा परस्परमें तुल्य होते हुए भी असंख्यातगुणी होती है । अप्रत्याख्यानावरण-चतुष्ककी प्रदेश - उदीरणासे प्रत्याख्यानावरण - चतुष्ककी उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणा किसी एक कषायकी परस्परमे समान होकर भी असंख्यातगुणी होती है । प्रत्याख्यानावरण-चतुष्ककी उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणासे सम्यक्त्व प्रकृति की उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणा असंख्यातगुणी होती है । सम्यक्त्वप्रकृतिकी प्रदेश- उदीरणासे भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणा परस्परमे समान हो करके भी अनन्तगुणी होती है । भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणासे हास्य और
१ कुदो, सजमाहिमुहचरिमसमयमिच्छाइट्ठिणा असखेजलोगपडिभागेण उदीरिददव्वग्गहणादो ।
जयघ०
२ कुदो; मिच्छत्तुदीरणादो अणताणुवधीणमण्णदरोदीरणा उदयपडिभागेण थोवूणच उगुणत्तुवलभादो । त जहा - अणताणुबधिकोहादीणमण्णदरस्स उदए सते से कसाया तिष्णि वि त्थिउक्कस कमेणुदय पविमतित्ति मिच्छत्तुदयादो अर्णताणुवधि-उदयो योवूणच उग्गुणो होइ, पर्याडविसेसवसेण तत्थ थोवूणभावदंसणादो | जयध० ३ कुदो, परिणामपाहम्मादो त जहा - अनंताणुवधीण मिच्छाइट्रिट्ठविसोहीए उक्कस्सिया पदेसुदीरणा जादा । सम्मामिच्छत्तस्स पुण तव्विसोहीदो अणतगुणसम्मामिच्छाइट्ठिविसोहीए उक्कस्सिया पदेसुदीरणा गहिदा । देण कारणेण पुव्विल्लादो एदिस्से असखेनगुणत्त जाद | जयध०
४ किं कारण; असजद सम्माइट्ठविसोहीदो अणतगुणसजमा हिमुहचरिमसमयसजदासंजदुक्कस्सविसोहीए पच्चक्खाणकसायाण मुक्कस्स पदे सुदीरणसा मित्तप्पडिलभादो । जयध०
५ कुदो; असखेजसमयपबद्ध पमाणत्तादो । जयघ०