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गा० ६२ ]
प्रदेश उदीरणा- अल्पबहुत्व-निरूपण
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पदेसुदीरणा असंखेज्जगुणा । ४९५. दुर्गुछाए जहणिया पदेसुदीरणा अनंतगुणा । ४९६. भयस्स जहणिया पदेसुदीरणा विसेसाहिया । ४९७, हस्स - सोगाणं जहणिया पदेसुदीरणा विसेसाहिया । ४९८. रदि - अरदीणं जहणिया पदेसुदीरणा विसेसाहिया । ४९९. तिन्हं वेदाणं जहणिया पदेसुदीरणा अण्णदरा विसेसाहिया । ५००. संजलणाणं जहणिया पदे सुदीरणा अण्णदरा संखेज्जगुणा ।
५०१. भुजगार- उदीरणा उवरिमाए गाहाए परूविहिदि । पदणिक्खेवो वड्डी वि तत्थेव ।
तदो पदेसुदीरणा समत्ता ।
ग्मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेश - उदीरणासे सम्यक्त्वप्रकृतिकी जघन्य प्रदेश - उदीरणा असंख्यात - गुणी होती है । सम्यक्त्वप्रकृतिकी जघन्य प्रदेश - उदीरणासे जुगुप्साकी जघन्य प्रदेश - उदीरणा अनन्तगुणी होती है । जगुप्साकी जघन्य प्रदेश - उदीरणासे भयकी जघन्य प्रदेश - उदीरणा विशेष अधिक होती है । भयकी जघन्य प्रदेश - उदीरणासे हास्य और शोककी जघन्य प्रदेश - उदीरणा विशेष अधिक होती है । हास्य- शोककी जघन्य प्रदेश - उदीरणासे रति और अरतिकी जघन्य प्रदेश-उदीरणा विशेष अधिक होती है । रति अरतिकी जघन्य प्रदेश- उदीरणा से तीनो वेदोमेंसे किसी एक वेदकी जघन्य प्रदेश - उदीरणा विशेष अधिक होती है। तीनों वेदोमेंसे किसी एक वेदी जघन्य प्रदेश - उदीरणासे संज्वलन कषायोमेसे किसी एक कषायकी जघन्य प्रदेश-उदीरणा संख्यातगुणी होती है ॥ ४८८-५००॥
चूर्णिसू०-उत्तरप्रकृतिप्रदेश-उदीरणा-सम्बन्धी भुजाकार-उदीरणा आगेकी गाथाके व्याख्यानावसरमें कही जावेगी । वहीं पर पदनिक्षेप और वृद्धि अनुयोगद्वारोका भी प्ररूपण किया जायगा ||५०१॥
इस प्रकार प्रदेश-उदीरणा समाप्त हुई और उसके साथ दूसरी गाथाके पूर्वार्धका व्याख्यान समाप्त हुआ ।
अब वेदक अधिकारकी दूसरी गाथाके उत्तरार्धकी व्याख्या करनेके लिए आचार्य उत्तर सूत्र कहते है
१ कुदो; सम्मामिच्छाइट्ठिस किलेसादो अण तगुणहीणसम्माइटिस किलेस परिणामेणुदीरिज माणदव्वग्गहणादो | जयध०
२ कुदो, देसघादिप डिभागियत्तादो । तदो जइ वि मिच्छाइट्रिउस किले सेण जहण्णा जादा, तो वि पुव्विल्लादो एसा अण तगुणा त्ति सिद्ध । जयध०
३ एत्थ भय-दुगु छाणमण्णदरस्स जहणभावे इच्छिजमाणे दोन्ह पि उदयं कादूण गेण्डियन्वं; अण्णा जहणभावाणुववत्तीदो । जयघ०
४ को गुणगारो १ सादिरेयपचरूवमेत्तो, णोकसायभागस्स पचमभागमेत्तवेदुदीरणादव्वादो सपुण्णकसायभागमेत्तसंजलणोदीरणढव्वस्स पयडिविसे सगव्भस्स तावदिगुणत्तसिद्धीए णिव्वाह मुवलभादो । जयध०