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गा० ६२ ]
अनुभाग- उदीरणा अल्पबहुत्व-निरूपण
३३२. संजलणाणमण्णदरा उकस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा' । ३३३. पचक्खाणावरणीयाणमुकस्साणुभागुदीरणा अण्णदरा अनंतगुणहीणां । ३३४. अपचक्खाणावरणी याणमुकस्साणुभागुदीरणा अण्णदरा अनंतगुणहीणा ।
३३५. णवुंसयवेदस्स उक्कस्साणुभागुदीरणा अनंतगुणहीणा । ३३६. अरदीए समान होते हुए भी अनन्तानुबन्धी किसी एक कषायकी उत्कृष्ट अनुभाग - उदीरणासे अनन्त - गुणी हीन है | ( क्योकि, सम्यक्त्व और चारित्रकी घातक अनन्तानुबन्धी कपायके उत्कृष्ट अनुभाग केवल चारित्रका ही घात करनेवाली संज्वलनकपायका उत्कृष्ट भी अनुभाग अनन्त - गुणित हीन ही पाया जाता है । ) प्रत्याख्यानावरणीय कषायोमे से किसी एक कषायकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा परस्परमे समान होते हुए भी किसी एक संज्वलन कषायकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणासे अनन्तगुणी हीन है । ( क्योकि, यथाख्यातसंयमके विरोधी संज्वलन कषायों के अनुभागको देखते हुए क्षायोपशमिक संयम के प्रतिबन्धक प्रत्याख्यानावरणीय कषायके अनुभागका अनन्तगुणित हीन होना न्यायसंगत ही है ।) अप्रत्याख्यावरणीय कषायोमेसे किसी एक कषायकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा परस्परमे समान होते हुए भी किसी एक प्रत्याख्यानावरणीय कषायकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणासे अनन्तगुणी हीन है ॥ ३२९-३३४॥ विशेषार्थ-सकल संयम के घातक प्रत्याख्यानावरणीय कषायके उत्कृष्ट अनुभाग देशसंयमके घातक अप्रत्याख्यानावरणीय कषायके उत्कृष्ट अनुभागका अनन्तगुणित होन होना स्वाभाविक ही है । यहाँ यह शंका की जा सकती है कि जब अनन्तानुबन्धी आदि कषायोका अनुभाग-सत्त्व स्वस्थानमे विशेषाधिक है, अर्थात् अनन्तानुबन्धी मानके अनुभागसत्त्वसे उसीके क्रोध का अनुभाग-सत्त्व विशेष अधिक होता है । इससे इसीकी मायाका अनुभाग-सत्त्व विशेष अधिक होता है और लोभका विशेष अधिक होता है । यही क्रम चारो जातिकी कषायोके लिए बतलाया गया है, तो फिर यहाॅ चूर्णिकारने उक्त कषायोकी अनुभागउदीरणा स्वस्थानमे परस्पर तुल्य कैसे कही ? इस शंकाका समाधान यह है कि अनुभागसत्त्वके उत्तरोत्तर विशेष अधिक होनेपर भी समान परिणामके निमित्तसे होनेवाली अनुभागउदीरणा समान ही होती है, ऐसा अर्थ आगममे स्वीकार किया गया है । अतएव उक्त कषायोकी अनुभाग- उदीरणा स्वस्थान में समान पाई जाती है ।
चूर्णिसू० - नपुंसक वेदकी उत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा अप्रत्याख्यानावरणीय किसी
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१ कुदो; दसण चरित्तपडिब धिअणताणुबधीणमुक्कस्साणुभागुदीरणादो चरित्तमेत्तपडिबंधीण सजल - मुक्काणुभागुदीरणाए अनंतगुणहीणत्त पडि विरोधाभावादो । जयध०
२ कुदो, जहाक्खादसजम विरोहिसजलणाणुभाग पेक्खियूण वयोवसमियसजमप्पडिवधिपच्चक्खाणकसायस्साणुभागस्साणतगुणहीणत्तसिद्धीए णाइयत्तादो । जयध०
३ किं कारणं; सयलसजमघादिपञ्चक्खाणकसायाणुभागादो देससजम विरोहि अपञ्चक्खाणाणुभागस्वाणं तगुणहीण सरूवेणावठाणदसणादो । जयध ०
४ कुदो, कसायाणुभागादो णोकसायणुभागस्साणतगुणहीणत्तसिद्धीए णाइयत्ताढो । जयध०
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