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गा० ६२] प्रदेस-उदीरणा-काल-निरूपण
५२३ सव्वसंकिलिट्ठस्स ईसिमझिमपरिणामस्स वा । ४१७. सम्मामिच्छत्तस्स जहणिया पदेसुदीरणा कस्म । ४१८. मिच्छत्ताहिमुहचरिमसमयसम्मामिच्छाइद्विस्स सव्वसंकिलिहस्स ईसिमज्झिमपरिणामस्स वा।
४१९. सोलसकसाय-णवणोकसायाणं जहणिया पदेसुदीरणा मिच्छत्तभंगो ।
४२०. एगजीवेण कालो । ४२१. मिच्छत्तस्स उकस्सपदेसुदीरगो केवचिरं कालादो होदि १ ४२२. जहण्णुक्कस्सेण एयसमओ' । ४२३. अणुक्कस्सपदेसुदारगो केवचिरं कालादो होदि ? ४२४. एत्थ तिण्णि भंगा । ४२५. जहण्णेण अंतोमुहुत्तं । ४२६. उक्कस्सेण उवड्डपोग्गलपरियट्ट । ४२७. सेसाणं कम्माणमुक्कस्सपदेसुदीरगा केवचिरं कालादो होदि १ ४२८. जहण्णुक्कस्सेण एयसमओ । ४२९. अणुक्कस्सपदेसुदीरगो पयडि-उदीरणाभंगो। परिणामवाले मिथ्यात्वके अभिमुख चरमसमयवर्ती असंयतसम्यग्दृष्टिके होती है ॥४१६॥
शंका-सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेश-उदीरणा किसके होती है ? ॥४१७॥
समाधान-तृतीय गुणस्थानके योग्य सर्वोत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त या ईषन्मध्यम परिणामवाले मिथ्यात्वके अभिमुख चरमसमयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टिके होती है ॥४१८॥
चूर्णिसू०-सोलह कषाय और नव नोकषायोकी जघन्य प्रदेश-उदीरणाका स्वामित्व मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेश-उदीरणाके स्वामित्वके समान जानना चाहिए ॥४१९।।
चूर्णिसू०-अब एक जीवकी अपेक्षा प्रदेश-उदीरणाका काल कहते हैं ॥४२०॥ शंका-मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणाका कितना काल है ? ॥४२१॥ समाधान-जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है १ ॥४२२॥
विशेषार्थ-क्योंकि, संयमके अभिमुख मिथ्याष्टिके अन्तिम समयमें ही मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणा होती है।
शंका-मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका कितना काल है ? ॥४२३॥
समाधान-इस विषयमें तीन भंग हैं-अनादि-अनन्त, अनादि-सान्त, और सादिसान्त । इनमेंसे मिथ्यात्वकी सादि-सान्त अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल उपार्धपुद्गलपरिवर्तन है ॥४२४-४२६।।
शंका-मिथ्यात्वके अतिरिक्त शेप कर्मोंकी उत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणा करनेवाले जीवोका कितना काल है ? ॥४२७।।
समाधान-जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ॥४२८॥ __ चूर्णिसू०-उक्त सर्व कर्मोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणाका काल प्रकृति-उदीरणाके कालके समान जानना चाहिए ।।४२९॥
१ कुदो, सजमाहिमुहमिच्छाइटिठ्ठचरिमसमए चेव तदुवलभादो । जयध० २ कुदो, सन्वेसिमप्पप्पणो सामित्तविसए चरिमविसोहीए समुवलद्धजण्णभावत्तादो । जयध०