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कसाय पाहुड सुत्त [६ वेदक-अर्थाधिकार ४३०. णिरयगदीए मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणताणुवंधीणमुक्कस्सपदेसुदोरगो केवचिरं कालादो होदि १ ४३१. जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ'। ४३२. अणुकस्सपदेसुदीरगो पयडि-उदीरणाभंगो । ४३३. सेसाणं कम्माणमित्थि-पुरिसवेदवजाणमुक्कस्सिया पदेसुदीरणा केवचिरं कालादो होदि १४३४. जहण्णेण एगसमओ। ४३५. उक्कस्सेण आवलियाए असंखेजदिभागो । ४३६.अणुक्कस्सपदेसुदीरगो केवचिरं कालादो होदि १ ४३७. जहण्णेण एगसमओ । ४३८. उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । ४३९. णवरि णqसयवेद-अरइ-सोगाणमुदीरगो उकस्सादो तेत्तीसं सागरोवमाणि । ४४०. एवं सेसासु गदीसु उदीरगो साहेयव्यो ।
अब आदेशकी अपेक्षा प्रदेश-उदीरणाका काल कहते है
शंका-नरकगतिमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुवन्धी चारो कवायोकी उत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणाका कितना काल है ? ।।४३०॥
समाधान-जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।।३३१।।
चूर्णिसू०-इन्हीं कर्मोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणाका काल प्रकृति-उदीरणाके कालके समान जानना चाहिए ।।४३२।।
शंका-पूर्व सूत्रोक्त कर्मोंके अतिरिक्त, तथा स्त्रीवेद और पुरुषवेदको छोड़कर ( क्योकि, नरकगतिमे इन दोनो वेदोका उदय ही नहीं होता, ) शेप कर्मोंकी उत्कृष्ट प्रदेशउदीरणाका कितना काल है ? ।।४३३।।
___ समाधान-जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है ।।४३४-४३५॥
शंका-इन्हीं पूर्वोक्त कर्मोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणाका कितना काल है ? ।।४३६॥
समाधान-जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। विशेप वात यह है कि नपुंसकवेद, अरति और शोककी प्रदेश-उदीरणाका उत्कृष्टकाल तेतीस सागरोपम है ॥४३७-४३९॥
चूर्णिसू०-इसी प्रकार शेप गतियोंमे प्रदेश-उदीरणा करनेवाले जीवोका काल सिद्ध
१ कुदो; मिच्छत्ताणताणुवधीणमुवसमयसम्मत्ताहिमुहमिच्छाइट्ठिस्स समयाहियावलियचरिमसमए दुचरिमसमए च जहाकमेणुक्कस्ससामित्तपडिलंभादो । सम्मत्तस्स कदकरणिजसमयाहियावलियाए, सम्मामिच्छत्तस्स वि सम्मत्ताहिमुहसम्मामिच्छाइट्ठिचरिमविसोहीए विसयतरपरिहारेणुक्कस्ससामित्तदसणादो ।
२ कुदो; सत्थाणसम्माइट्ठिस्स सबुक्कस्सविसोहीए ईसिमज्झिमपरिणामेण वा एगसमय परिणमिय विदियसमए परिणामतर गदस्स तदुवलभादो । जयध०
३ कुदो; उकत्सपदेसुदीरणापाओग्गचरिमखडझवसाणहाणेसु असखेजलोगमेत्तेसु अवठ्ठाणकालरस उक्करसेण तप्पमाणत्तोवएसादो । जयध०
४ कुदो; उक्करसादो अणुकरसभाव गतूण एगसमएण पुणो वि परिणामवसेणुकस्सभावेण परिणदम्मि सव्वेसिमेगसमयमेत्ताणुकत्सजद्दण्णकालोवलभादो । जयध०
५ कुदो, कसायणोकसायाणं पयडि उदीरणाए उफल्मकालत्स तप्यमाणत्तोवलंभादो । जयध० ६ कुदो; एदेसि कम्माण पयडि-उदीरणुकत्सकालरस णिरयगईए तप्पमाणत्तोवलंमादो । जयध०
जयध०