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गा० ६२] अनुभाग-उदारणा अर्थपद-निरूपण
४९९ २२१. 'को कदपाए द्विदीए पवेसगो' त्ति पदस्स द्विदि-उदीरणा कायया। २२२. एत्थ हिदिउदीरणा दुविहा-मूलपयडिडिदिउदीरणा उत्तरपयडिडिदिउदीरणा च । २२३. तत्थ इमाणि अणियोगद्दाराणि । तं जहा- पमाणाणुगमो सामित्तं कालो अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचयो कालो अंतरं सण्णियासो अप्पाबहुअं भुजगारो पदणिक्खेवो वड्डी हाणाणि च । २२४. एदेसु अणियोगद्दारेसु विहासिदेसु 'को कदमाए हिदीए पवेसगी त्ति पदं समत्तं ।
२२५. 'को व के य अणुभागे त्ति अणुभागउदीरणा कायव्वा । २२६. तत्थ तत्थ अट्ठपदं । २२७. अणुभागा पयोगेण ओकड्डियूण उदये दिजति सा उदीरणा । २२८. तत्थ जं जिस्से आदिफद्दयं तं ण ओकड्डिज्जदि । २२९. उदय और उदीरणामे जो थोड़ी-सी विशेषता है, वह व्याख्यानाचार्यों के विशेष व्याख्यानसे ज्ञात ही हो जाती है।
इस प्रकार कर्मोदयके व्याख्यान कर देनेपर वेदक अधिकारकी प्रथम गाथाका अर्थ समाप्त हो जाता है।
चूर्णिसू०-'कौन जीव किस स्थितिमें प्रवेशक होता है' दूसरी गाथाके इस प्रथम पदकी स्थिति-उदीरणा (-रूप व्याख्या ) करना चाहिए। यह स्थिति-उदीरणा दो प्रकारकी है-मूलप्रकृतिस्थिति-उदीरणा और उत्तरप्रकृतिस्थिति-उदीरणा । इन दोनो प्रकारकी उदी. रणाओंके प्ररूपण करनेवाले अनुयोगद्वार इस प्रकार हैं-प्रमाणानुगम, स्वामित्व, एक जीवकी अपेक्षा काल, अन्तर, नाना जीवोकी अपेक्षा भंगविचय, काल और अन्तर, सन्निकर्प, अल्पबहुत्व, भुजाकार, पदनिक्षेप, स्थान और वृद्धि । इन अनुयोगद्वारोके व्याख्यान करनेपर 'को कदमाए हिदीए पवेसगो' इस पदका अर्थ समाप्त हो जाता है ॥२२२-२२४॥
विशेषार्थ-चूर्णिसूत्रकारने ग्रन्थ-विस्तारके भयसे उक्त अनुयोगद्वारोका वर्णन नहीं किया है । अतः विशेष जिज्ञासुओको जयधवला टीका देखना चाहिये ।
चूर्णिसू० - 'कौन जीव किस अनुभागमें प्रवेश करता है। दूसरी गाथाके. इस दूसरे पदमें अनुभाग-उदीरणाकी प्ररूपणा करना चाहिए। इस विषयमे यह अर्थपद है। वह इस प्रकार हैं -प्रयोग अर्थात् परिणाम-विशेषके द्वारा स्पर्धक, वर्ग, वर्गणा और अविभागप्रतिच्छेदस्वरूप अनन्तभेद-भिन्न अनुभागका अपकर्षण करके और अनन्तगुणहीन बनाकर जो स्पर्धक उदयमें दिये जाते हैं, उसे उदीरणा कहते हैं। उसमे जिस कर्म-प्रकृतिका जो आदि स्पर्धक हैं, वह उदीरणाके लिए अपकर्षित नही किया जा सकता है । इस प्रकार द्वितीय, तृतीय आदि
१ पयडि उदीरणाणतरमेत्तो ट्ठिदिउदीरणा कायव्वा, पत्तावसरत्तादी । जयध० ।
२ किम टपद णाम १ जत्ता सादाराण पयदत्थविसए सम्ममवगमो समुप्पजइ, तमस्स वा वर्ष पदमठ्ठपदमिदि भण्णदे । जयध'
३ अणुभागा मूलुत्तरपयडीणमणतभेयभिषणफद्दयवग्गणाविभागपलिच्छेदसरूवा, पयोगेण परिणाम. विसेसेण ओकड्डियूण अणतगुणहीणसरूवेण जमुदए दिजति, सा उदीरणा णाम । जयध०
४ कुदो, तत्तो हेठा अणुभागफद्दयाणमसभवादो । जयध०