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कसाय पाहुड सुत्त [६ वेदक-अर्थाधिकार पवेसगा असंखेज्जगुणा' । २१५. छब्बीसाए पवेसगा अणंतगुणा ।
२१६. भुजगारो कायव्यो । २१७. पदणिक्खेवो काययो । २१८. वड्डी वि कायचा।
२१९. 'खेत्त-भव-काल-पोग्गलट्ठिदि-विवागोदयखयो दु' त्ति एदस्स विहासा । २२०. कम्मोदयो खेत्त-भवकाल-पोग्गल-द्विदिविवागोदयक्खओ भवदि ।।
विशेषार्थ-इन उक्त सर्व प्रवेशस्थानोंका संचय काल उत्तरोत्तर असंख्यातगुणित होनेसे उनमें प्रवेश करनेवाले जीवोंकी संख्या भी असंख्यातगुणित बतलाई गई है।
चूर्णिसू०-अट्ठाईस प्रकृतियों के प्रवेशक जीवोंसे छब्बीस प्रकृतियोके प्रवेश करनेवाले जीव अनन्तगुणित हैं ॥२१५॥
विशेषार्थ-क्योंकि छब्बीस प्रकृतियोंकी सत्तावाले जीवोकी संख्या कुछ कम सर्व जीवराशि-प्रमाण है, जो कि अनन्त है । अतएव छब्बीस प्रकृतियोंके प्रवेश करनेवाले जीव अनन्तगुणित बतलाये गये हैं।
चूर्णिसू०-भुजाकार-प्ररूपणा करना चाहिए, पदनिक्षेपका वर्णन करना चाहिए और वृद्धिकी प्ररूपणा भी करना चाहिए ॥२१६-२१८॥
इस प्रकार इन भुजाकारादि अनुयोगद्वारोके निरूपण करनेपर 'कितनी प्रकृतियाँ किस जीवके उदयावलीमें प्रवेश करती हैं। प्रथम गाथाके इस द्वितीय पादका अर्थ समाप्त हुआ।
चूर्णिसू०-अब 'क्षेत्र, भव, काल और पुद्गल द्रव्यका आश्रय लेकर जो स्थितिविपाकरूप उदय होता है, उसे क्षय कहते हैं' गाथाके इस उत्तरार्धकी विभापा की जाती है अपक्कपाचनके विना यथाकाल-जनित कर्मोंके विपाकको कर्मोदय कहते हैं ? वह कर्मोदय क्षेत्र, भव, काल और पुद्गल द्रव्यके आश्रयसे स्थितिके विपाकरूप होता है । अर्थात् कर्म उदयमें आकर अपना फल देकर झड़ जाते है । इसीको उदय या क्षय कहते है ।।२१९-२२०॥
विशेषार्थ-यह कर्मोदय प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशके भेदसे चार प्रकारका है । इनमेंसे यहॉपर प्रकृति-उदयसे प्रयोजन है, क्योकि प्रकृति-उदीरणाके वर्णनके पश्चात् प्रकृति-उदयका वर्णन ही न्याय-प्राप्त है । चूर्णिसूत्रकारने कर्मोदयकी अर्थ-विभापा इसलिए नहीं की है कि उदीरणाके वर्णनसे ही उदयका वर्णन भी हो ही जाता है। और फिर उदयसे उदीरणा सर्वथा भिन्न भी तो नहीं है, क्योंकि उदयके अवस्था-विशेषको ही उदीरणा कहते हैं ।
१ किं कारण अट्ठावीससतकम्मियवेदगसम्माइट्टिासिस्स पहाणभावेण विवक्खियत्तादो । जयध० २ कुदो; किंचूणसव्वजीवरासिपमाणत्तादो । जयध०
३ कम्मेण उदयो कम्मोदयो, अपक्कपाचणाए विणा जहाकालजणिदो कम्माण छिदिक्खएण जो विवागो सो कम्मोदयो त्ति भण्णदे । सो वुण खेत्त-भत्र काल-पोग्गादिविवागोदरख यो त्ति एदस्स गाहापच्छद्धस्स समुदायस्थो मवदि । कुदो, खेत-भव-काल-पोग्गले अस्सिऊण जो टिदिक्खयो उदिण्ण' फलखधपरिसडणलक्खणो सोदयो त्ति मुत्तत्यावलंगणादो। जयध