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कसा पाहुडे सुरु
[ ६ वेदक-अर्थाधिकार
चउडाणिया वा' । २४६. छण्णोकसापाणमणुभाग- उदीरणा देसवादी वा सव्वधादी वा' । २४७. दुट्ठाणिया वा तिट्ठाणिया वा चउट्टाणिया वा । २४८. चदुसंजलणेणवणोकसायाणमणुभाग- उदीरणा एह दिए वि देसवादी होई ।
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होनेसे देशघाती कही गई है । उसे जघन्य अनुभागकी अपेक्षा एकस्थानीय और उत्कृष्ट अनुभागकी अपेक्षा स्थानीय कहा है । सम्यग्मिध्यात्वप्रकृति सम्यक्त्वकी विनाशक है, अतः सर्वधाती है और इसका अनुभाग द्विस्थानीय ही कहा है, क्योकि इसमें अन्य तीन विकल्प संभव नही हैं। चारो संज्वलन और तीनों वेद जघन्य अनुभागकी अपेक्षा सर्वघाती हैं । तथा अजघन्य और उत्कृष्ट अनुभागकी अपेक्षा दोनो रूप भी हैं । इसका अभिप्राय यह है कि मिथ्यादृष्टि से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक संक्लेश और विशुद्धिके निमित्तसे उक्त कर्मप्रकृतियोकी अनुभाग- उदीरणा सर्वघाती भी होती है और देशघाती भी होती है । किन्तु संयतासंयत से लेकर ऊपर के गुणस्थानोमें अनुभाग- उदीरणा सर्वत्र देशघाती ही होती है, क्योकि, वहाँ सर्वघातीरूप उदीरणाका होना संभव नहीं है । उक्त प्रकृतियोकी चारो ही स्थानरूप उदीरणा कहनेका आशय यह है कि नर्वे गुणस्थानमें अन्तरकरण करनेपर उक्त प्रकृतियोकी अनुभाग- उदीरणा नियमसे लतारूप एकस्थानीय ही दिखाई देती है । इससे नीचे दूसरे गुणस्थानतक द्विस्थानीय ही अनुभागउदीरणा होती है । किन्तु मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में परिणामो के परिवर्तनके अनुसार द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय और चतुःस्थानीय भी होती है । चूर्णिसू० - हास्यादि छह नोकपायोकी अनुभागउदीरणा देशघाती भी है और सर्वघाती भी है । तथा द्विस्थानीय भी है, त्रिस्थानीय भी है और चतुःस्थानीय भी है ॥ २४६ ॥ विशेषार्थ - संयतासंयतादि उपरिम गुणस्थानों में हास्यादिषट्ककी अनुभाग- उदीरणा द्विस्थानीय होनेपर भी देशघाती ही होती है । किन्तु इससे नीचे सासादनगुणस्थान तक द्विस्थानीय होते हुए भी देशघाती और सर्वघाती इन दोनों ही रूपोमे अनुभाग- उदीरणा होती है । मिध्यादृष्टिकी अनुभाग- उदीरणा द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय तथा चतुःस्थानीय होती है । चूर्णिसु० - चारो संञ्चलन और नवों नोकपायोकी अनुभाग- उदीरणा एकेन्द्रिय जीवमे भी देशघाती होती होती है ॥ २४८ ॥
१ कुदो; अंतरकरणे कदे एदेसिमणुभागोदीरणाए पियमेणेगट्ठाणियत्तद सणादो । हेट्ठा सव्वत्येव गुणपडिवण्णेसु दुट्ठाणियत्तणियमदणादो । मिच्छाइट्ठिम्मि दुट्ठाण - तिट्ठाण चउट्ठाणभेदेण परियत्तमाणाणुभागोदीरणाए दसणादो | जयध०
२ कुदो; असंजदसम्माइटिठप्पहुडि हेट्ठा सव्वत्थेव देस-सव्वधादिभावेणेदे सिमणुभा गोदीरणाए उत्ति सणादो; सजदासजदप्पहुडि जाव अपुव्वकरणो त्ति देसघादिभावेणुदीरणाए पउत्तिणियमट सणादो
च । जयध०
३ कुढो, सजदास जढादिउवरिमगुणट्ट्ठाणेसु छष्णोकसायाणमणुभागोदीरणाए देमघादि दुट्टाणियत्तणियम सणादो | हेठिमेसु वि गुणपडिवणेसु विट्ठाणियाणुभागुदीरणाए देस सव्वधादिविसेसिदार संभवोचलभादो । मिच्छाइट्रिट्ठम्मि विद्याण-तिट्ठाण चउट्ठाणवियप्पाणं सव्वेसिमेव सभवादो | जयध०
४ एत्य देसधादो चेव उदीरणाए होइ ति णावहारेयव्वं, किंतु एदेसु जीवसमासेसु सव्वधादि