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गा० ६२ ]
अनुभाग- उदीरणा -संज्ञा-निरूपण
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दो वि एकदो वत्तस्समो । २३९. तं जहा - मिच्छत्त-वारसकसायाणमणुभाग- उदीरणा सन्घादी' । २४०. दुट्ठाणिया तिट्ठाणिया चउट्टाणिया वा । २४१. सम्मत्तस्स अणुभागुदीरणा देसवादी । २४२. एगट्ठाणिया वा दुट्ठर्णिया वा । २४३. सम्मामिच्छत्तस्स अणुभागउदीरणा सव्ववादी विट्ठाणियाँ । २४४. चदुसंजलण-तिवेदाणभागुदीरणा देसवादी सव्ववादी वा । २४५. एगट्टाणिया वा दुट्ठाणिया तिढाणिया
विशेषार्थ - वर्ण्यमान विषयके नामको संज्ञा कहते हैं । यहाँ अनुभागकी उदीरणाका वर्णन सर्वघाति और देशघातिरूप घातिसंज्ञाके द्वारा, तथा लता, दारु, अस्थि और शैलरूप चार प्रकारकी स्थानसंज्ञाके द्वारा किया जायगा ।
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चूर्णिसू० - उन दोनोका एक साथ वर्णन इस प्रकार है - मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी आदि बारह कषायोकी अनुभाग- उदीरणा सर्वघाती है, तथा वह द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय और चतुःस्थानीय है । सम्यक्त्वप्रकृतिकी अनुभाग- उदीरणा देशघाती तथा एकस्थानीय और द्विस्थानीय है । सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुभाग- उदीरणा सर्वघाती और द्विस्थानीय है चार संज्वलन और तीनों वेदोकी अनुभाग- उदीरणा देशघाती भी है और सर्वघाती भी है, तथ एक स्थानीय भी है, द्विस्थानीय भी है, त्रिस्थानीय भी है और चतुःस्थानीय भी है ॥२३९-२४५॥
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विशेषार्थ - अनुभाग- उदीरणासम्बन्धी एकस्थानीय आदि चार भेद क्रमशः जघन्य, अजघन्य, उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागशक्तिकी अपेक्षासे किये गये हैं । अतएव मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी आदि बारह कषायोके उत्कृष्ट अनुभागकी अपेक्षा द्विस्थानीय और त्रिस्थानीय भेद जानना चाहिए । सम्यक्त्वप्रकृति सम्यग्दर्शनका विनाश करनेमे असमर्थ
१ कुदो, एसिमणुभागोदीरणाए सम्मत्तः सजमगुणाण णिरवसेस विणासदसणादो । पञ्चक्खाणकसायोदीरणा सतीए विदेससंजमो समुवलब्भदि, तदोण तेसिं सव्वधादित्तमिदि णासकणिज, सयलसजममस्सिऊण तेसिं सव्वघादित्तसमत्थणादो | जयध०
२ कुदो, मिच्छत्त बारसकसायाण मुक्कस्साणुभागुदीरणाए चउट्टाणियत्तदसणादो, तेसिं चेवाणुक्कस्साणुभागुदीरणाए चउट्ठाण तिट्ठाण दुट्ठाणियत्तदसणादो । जयध०
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३ कुदो, मिच्छत्तदीरणाए इव सम्मत्तुदीरणाए सम्मत्तसण्णिदजीवपजायरस अच्चतुच्छेदाभावादो । जयध० ४ कुदो, सम्मत्तजहण्णाणुभागुदीरणाए एगट्ठाणियत्तदसणादो, तदुकस्साणुभागुदीरणाए दुट्ठाणियत्तदसणादो | जयध०
५ कुदो ताव सव्वघादित्त ! मिच्छत्तोदीरणाए इव सम्मामिच्छत्तोदीरणाए वि सम्मत्तसष्णिदजीवगुणस्स णिम्मूलविणासदसणादो । एसा पुण दुट्ठाणिया चेव । कुदो, सम्मामिच्छत्ताणुभागम्मि दुट्ठाणियत्त मोत्तूण पयारतरासभवादो | जयध०
६ कुदो, एदेसिं जहणाणुभागुदीरणाए देसघादित्तणियमदसणादो, उक्कस्साणुभागुदीरणाए च णियमदो सव्वघादित्तदसणादो, अजहष्णाणुकस्साणुभागोदीरणासु देस- सव्वघादिभावाणं दोन्ह पि समुवलभादो च । एतदुक्त भवति-मिच्छाइट्रिट्ठप्प हुडि जाव असजद सम्माइट्ठिति ताव एदेसिं कम्माणमणुभागुदीरणाए सव्वघादी देसधादी च होदि, सकिलेस विसोहिवसेण । सजदासजद पहुडि उवरि सव्वत्येव देसघादी होदि. तत्य सन्वघादिउदीरणाए तग्गुणपरिणामेण सह विरोहादो ति । जयध०