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गा० ६२] उदीरणास्थान-भंगविचय-निरूपण
४९५ उकस्सेण उबड्डपोग्गलपरियट्ट । १८६. सत्तवीसाए पयडीणं पवेसगो केवचिरं कालादो होदि ? १८७. जहण्णेण एयसमओ । १८८. उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागे। १८९. अट्ठावीसं पयडीणं पवेसगो केवचिरं कालादो होदि ? १९०. जहण्णेण अंतोमुहुत्त । १९१. उक्कस्सेण वे छावद्विसागरोवमामि सादिरेयाणि ।
१९२. अंतरमणुचिंतिऊण णेदव्यं ।
१९३ णाणाजीवेहि भंगविचयो । १९४. अट्ठावीस-सत्तावीस-छव्वीस-चदुवीसजघन्य काल एक समय है, क्योकि अट्ठाईस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशमसम्यग्दृष्टि जीवके मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व या वेदकसम्यक्त्व प्राप्त करनेपर, अथवा सासादनसम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्वमे जानेपर एक समयप्रमाण जघन्य प्रवेश-काल पाया जाता है। छब्बीस प्रकृतियोके प्रवेशका उत्कृष्ट काल उपार्धपुद्गल परिवर्तन है ॥१८३-१८५॥
विशेषार्थ-जिस जीवने अपने संसार-परिभ्रमणके अर्धपुद्गलपरिवर्तन काल अवशिष्ट रहनेके प्रथम समयमें उपशमसम्यक्त्वको उत्पन्न किया और सर्व जघन्य अन्तर्मुहूर्तकाल सम्यक्त्वके साथ रहकर मिथ्यात्वको प्राप्त हो सर्वलघुकाल-द्वारा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतियोंकी उद्वेलनाकर छब्बीस प्रकृतियोका प्रवेशक बनकर अर्धपुद्गलपरिवर्तन तक संसारमे परिभ्रमणकर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण संसारके शेप रह जानेपर सम्यक्त्वको प्राप्त किया । ऐसे जीवके कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन-प्रमाण छब्बीस प्रकृतियोका उत्कृष्ट प्रवेश काल पाया जाता है ।
शंका-सत्ताईस प्रकृतियोके प्रवेश करनेवाले जीवका कितना काल है ? ॥१८६॥
समाधान-जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है । क्योकि सम्यग्मिथ्यात्वके उद्वेलनका उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातवॉ भाग बतलाया गया है ॥१८७-१८८॥
शंका-अट्ठाईस प्रकृतियोके प्रवेश करनेवाले जीवका कितना काल है १ ॥१८९॥
समाधान-जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल सातिरेक दो वार छयासठ सागरोपम है ॥१९०-१९१॥
विशेषार्थ-किसी मिथ्यादृष्टि जीवके उपशमसम्यक्त्वको ग्रहणकर तदनन्तर ही वेदकसम्यक्त्वी बनकर अट्ठाईस प्रकृतियोके प्रवेशको प्रारम्भकर सर्वलघु अन्तर्मुहूर्तकालके पश्चात् ही अनन्तानुबन्धी कषायका विसंयोजनकर चौबीस प्रकृतियोका प्रवेशक बननेपर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण जघन्य काल सिद्ध हो जाता है । इसी प्रकार उत्कृष्ट कालकी प्ररूपणा जानना चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ सातिरेकसे तीन वार पल्योपमके असंख्यातवें भागसे अधिक अर्थ अभीष्ट है।
चूर्णिसू०-इसी प्रकार उक्त प्रवेश स्थानोका एक जीवकी अपेक्षा अन्तर भी आगमके अनुसार चिन्तवन करके जानना चाहिए ॥१९२॥
चूर्णिसू०-अब नाना जीवोकी अपेक्षा भंगविचय करते है-अट्ठाईस, सत्ताईस, चौवीस और इक्कीस प्रकृतियाँ नियमसे उदयावलीमे प्रवेश करती है। (क्योकि, नानाजीवोकी