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कसाय पाहुड सुत्त
[१ पैदोस वित्ती
५८. एवं माणमाया लोभाणं । ५९. आदेसकसाएण जहा चित्तकम्मे लिहिदो कोहो रूसिदो तिवलिदणिडालो भिउडिं काऊण । ६०. माणो थो लिक्खदे | ६१. मायाणिगृहमाणो लिक्खदे । ६२. लोहो णिव्वाइदेण पंपागहिदो लिक्खदे । ६३. एवमेदे कटुकम्मे वा पोत्तकम्मे वा, एस आदेसकसाओ णाम ।
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शस्त्राखोसे सुसज्जित शत्रुको देखकर क्रोध उत्पन्न होता है ( ६ ) अनेक जीव और एक अजीव भी क्रोधोत्पत्ति के कारण होते हैं, जैसे- एक रथपर सवार, अथवा एक तोपको उठाये हुए अनेक शत्रुपक्षीय योद्धाओको देखकर क्रोध उत्पन्न होता है । ( ७ ) अनेक जीव और अनेक अजीव भी क्रोधोत्पत्तिके कारण होते है, जैसे- नाना प्रकारके शस्त्रास्त्रोंसे सुसज्जित शत्रु - सेना को देखकर क्रोध उत्पन्न होता है (८) ।
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चूर्णिसु० - जिस प्रकार समुत्पत्तिककपायकी अपेक्षा क्रोधके आठ भंग कहे हैं, उसी प्रकार मान, माया और लोभके भी आठ आठ भंग जानना चाहिए || ५८ || विशेषार्थ- - यहाँ यह आशंका नहीं करना चाहिए कि अजीव पदार्थ मानक पाय आदिकी उत्पत्तिके कारण कैसे होते हैं ? क्योकि अपने रूप, यौवन, धनादिके गर्वसे गर्वित पुरुषके शृंगारके वस्त्र, अलंकार, सवारीकी मोटर, वग्घी और रहनेके मकान आदि मानकपायकी उत्पत्ति के कारण देखे जाते है । इसी प्रकार माया और लोभकपायके भी दृष्टान्त जान लेना चाहिए ।
अब आदेशकपायके स्वरूपनिरूपण के लिए उत्तरसूत्र कहते हैं
चूर्णिसू० - चित्रमे लिखे हुए कषायोके आकारको आदेशकपाय कहते हैं । जैसेचित्र-लिखित रोप- युक्त, मस्तकपर त्रिवली पाड़े हुए और भृकुटि चढाए हुए पुरुपका आकार आदेश क्रोधकषाय है । चित्र - लिखित स्तब्ध - देव, गुरु, शास्त्र, माता, पिता, स्वामी आदिकी विनय नही करनेवाला - अभिमानी पुरुपका आकार आदेशमानकपाय है। चित्र- लिखित निगूह्यमान - छल, प्रपंच करता हुआ - पुरुपका आकार आदेशमायाकपाय है । णिव्वाइद अर्थात् संसार भरकी सम्पदाके संचय करनेकी अभिलापासे युक्त, और पंपागृहीत अर्थात् कृपण, लम्पटी या कंजूस - पुरुपका चित्र - लिखित आकार आदेशलोभकपाय है ॥५९-६२ ॥ विशेषार्थ — आदेशकषाय, और स्थापनाकपायमे परस्पर क्या भेद है, ऐसी आशंका नही करना चाहिए | क्योकि सद्भावस्थापनारूप कपायकी प्ररूपणा और कषायबुद्धिको आदेशकषाय कहते हैं । तथा कषाय-विषयक तदाकार और अतदाकार स्थापनाको स्थापनाकषाय कहते हैं । इस प्रकार दोनो कषायोका भेद स्पष्ट है ।
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चूर्णिसू०- - इस प्रकार काष्ठकर्ममें, अथवा पोत्थकर्ममे अथवा शैलकर्म आदिमें उत्कीर्ण या निर्मित कपायोके ये आकार आदेशकपाय कहलाते हैं ॥ ६३ ॥
विशेषार्थ — लकड़ीकी पुतली आदि बनानेको काष्ठकर्म उत्कीर्ण करनेको शैलकर्म कहते हैं । पोथी, कागज आदिपर चित्र
कहते है । पापाणमें मूर्त्तिके लिखनेको पोत्थकर्म कहते
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