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कसाय पाहुड सुत्त
[ ५ संक्रम-अर्थाधिकार
संखेज्जवस्तम्भहियाणि । ३५४. अवत्तव्यसंकमो केवचिरं कालादो होदि १ ३५५. जहण्णुक्कस्सेण एयसमओ ।
३५६. सयवेदस्स अप्पय (संकमो केवचिरं कालादो होदि १ ३५७. जहण्णेण एयसमओ । ३५८. उक्कस्सेण वे छावट्टिसागरोवमाणि तिण्णि पलिदोवमाणि सादिरेयाणि । ३५९. सेसाणि इत्थवेदभंगो ।
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३६०. हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं भुजगार - अप्पयर संकपो केवचिरं कालादो होदि ९ ३६१. जहण्णेण एयसमओ । ३६२. उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ' । ३६३. अवत्तव्वसंकमो केवचिरं कालादो होदि १ ३६४. जहण्णुकस्से एयसमओ ।
३६५. एवं चतुसु गदी ओघेण साधेदूण दव्वो ।
३६६. एइंदिए सव्वेसिं कम्माणमवत्तव्वसंकमो णत्थि । ३६७. सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणं भुजगार संकामओ केवचिरं कालादो होदि १ ३६८. जहणेण एयसमओ । शंका- स्त्रीवेदके अवक्तव्य संक्रमणका कितना काल है ? || ३५४ || समाधान - जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समयमात्र है || ३५५ || शंका- नपुंसक वेद के अल्पतरसंक्रमणका कितना काल है ? || ३५६ || समाधान - जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन वार छयासठ सागरोपम है ।। ३५७-३५८।
पल्योपमसे अधिक दो
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चूर्णिसू० - नपुंसकवेदके शेप संक्रमणोका काल स्त्रीवेदके संक्रमणकाल के समान जानना चाहिए || ३५९ ॥
शंका- हास्य, रति, अरति और शोकके भुजाकारसंक्रमण और अल्पतरसंक्रमणका कितना काल है ? || ३६०||
समाधान- जघन्यकाल एक समय और उत्कृटकाल अन्तर्मुहूर्त है ।। ३६१-३६२।। शंका-उक्त प्रकृतियोके अवक्तव्यसंक्रमणका कितना काल है ? || ३६३॥ समाधान - जवन्य और उत्कृष्ट काल एक समयमात्र है || ३६४ ||
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चूर्णिम् ० - इसी प्रकार चारो गतियोमे ओघके समान साध करके कालकी प्ररूपणा करना चाहिए ॥ ३६५॥
चूर्णिसू०- ( इन्द्रिय मार्गणाकी अपेक्षा ) एकेन्द्रियोमे सभी कर्मोंका अवक्तव्य संक्रमण नहीं होता है ॥ ३६६॥
शंका-सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्व के भुजाकारसंक्रमणका कितना काल
है ? ।। ३६७॥
१ अप्पप्पणो बधकाले मुजगारसकमो होइ, पडित्रक्खपयडिबंधकाले एढेसिमप्यरसकमो होदित्ति पयदुक्कस्सकालसिद्धी वत्तव्वा । जयध०
२ कुदो; गुणतर पडिवत्तिपडिवाद णित्र घणस्स सव्वे सिमवत्तव्वस कमस्सेइ दिएसु असभवादो | जय ० ३ कुदो; चरिमुव्वेल्लणखडयदुचरिमफालीए सह तत्युप्पण्णत्स विदियसमयम्मि तडवलभादो | दुचरिमुव्वेल्लणकंडयचरिफालिसंकमादो चरिमुव्वेल्लणखड्यपटमफालि संकामिय तदणंतरसमए तत्तो णिस्सरिदस्स वा तदुवलंभसंभवादो । जयध०