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कसाय पाहुड सुत्त [६ वेदक अर्थाधिकार १२१. पणुवीसं पयडीओ उदयावलियं पविसंति दसणतियं मोत्तृण' । १२२. अणंताणुबंधीणमविसंजुत्तस्स उवसंतदंसणमोहणीयस्स। १२३. णत्थि अण्णस्स कस्स वि। १२४. चउवीसं पयडीओ उदयावलियं पविसंति अणंताणुवंधिणो वञ्ज ।
विशेषार्थ-यह छब्बीस प्रकृतिरूपस्थान सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना करनेवाले सादि मिथ्यादृष्टिके ही नहीं होता है, किन्तु अनादिमिथ्यादृष्टिके भी पाया जाता है, क्योकि उसके तो उक्त दोनों प्रकृतियोंका अस्तित्व ही नहीं पाया जाता है । तथा अट्ठाईस या सत्ताईस प्रकृतियोंकी सत्तावाले मिथ्यादृष्टिके उपशमसम्यक्त्वके अभिमुख होनेपर अन्तर करके सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी आवलीमात्र प्रथम स्थितिके गला देने पर छब्बीस प्रकृतिरूप स्थान पाया जाता है। इसके अतिरिक्त पञ्चीस प्रकृतियोका प्रवेश करनेवाले उपशमसम्यग्दृष्टिके सम्यग्मिथ्यात्व या सम्यक्त्वप्रकृतिके अपकर्षण करनेपर, अथवा सासादनसम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्वको प्राप्त होनेपर भी एक समय छब्बीस प्रकृतियोके प्रवेशरूप स्थान पाया जाता है। चूर्णिकारने उदाहरणकी दिशामात्र बतलाने के लिए सम्यक्त्वप्रकृति
और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनाका निर्देश किया है, अतः उक्त अन्य प्रकारोका भी यहाँ संग्रह कर लेना चाहिए।
चूर्णिसू०-दर्शनमोहकी तीन प्रकृतियां छोड़कर चारित्रमोहकी पच्चीस प्रकृतियां उदयावलीमे प्रवेश करती हैं। यह प्रकृतिउदीरणास्थान अनन्तानुवन्धीकी विसंयोजना न करके दर्शनमोहनीयका उपशमन करनेवाले उपशमसम्यग्दृष्टि जीवके ही होता है, अन्य किसीके भी नहीं होता ।। १२१-१२३॥
विशेषार्थ-दर्शनमोहकी तीन प्रकृतियोका उपशम करनेवाले उपशमसम्यग्दृष्टि जीवके चारित्रमोहकी पच्चीस प्रकृतियोका प्रवेश उदयावलीके भीतर निरावाधरूपसे पाया जाता है । यहाँ पर 'अनन्तानुवन्धीकी विसंयोजना न करनेवाले' इस विशेपणके देनेका अभिप्राय यह है कि जो अनन्तानुवन्धीकी विसंयोजना करके उपशमसम्यग्दृष्टि बनेगा, उसके तो इक्कीस प्रकृतिरूप स्थान प्राप्त होगा, पच्चीस प्रकृतिवाला स्थान नहीं। इसी अर्थकी पुष्टि करनेके लिए कहा है कि यह स्थान अविसंयोजित उपशमसम्यग्दृष्टिके सिवाय और किसीके नहीं पाया जाता है।
चूर्णिसू०-अनन्तानुवन्धी चतुष्कको छोड़कर शेप चौवीस मोहप्रकृतियाँ उदयावलीमें प्रवेश करती हैं ॥१२४॥
१ कसाय-णोकसायपयडीण उदयावलियपवेसस्स कत्थ वि समुवलंभादो । जयध
२ किं कारणं; उवसतदंसणमोहणीयम्मि दसणतिय मोत्तूण पणुवीसचरित्तमोहपयडीणमुदयावलियपवेसस्स णिप्पडिबधमुवलंमादो। एत्याणनाणुबंधीणमविसजुत्तस्सेत्ति विसेसण विसजोइदाणताणुवविचउक्कम्मि पणुवीसपवेसट्ठाणासंभवपदुप्पायणफल, उवसमसम्माइट्टिणा अणंताणुवंधीसु विसजोडटेसु इगिवीसपवेसट्ठाणुप्पत्तिदसणादो। जयघ०
३ कुदो;अविसजोइदाणताणुवधिचउक्कमुवसमसम्माइछि मोत्तूणण्णत्थपणुवीसपवेसट्ठाणासभवादो ।
४ चउवीससतकम्मियवेदयसम्माइट्ठि-सम्मामिच्छाइट्ठीसु तदुवलभादो । विसजोयणायुवतजोगपढमसमए वट्टमाणमिच्छाइट्ठिम्मि वि एदत्स पवेसट्ठाणस्म सभवो दट्टयो । जयध०
जयध०