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गा० ५८] प्रदेशसंक्रम-पदनिक्षेप-स्वामित्व-निरूपण
४४९ संकमो तस्स उक्कस्सिया हाणी कोहसंजलणस्स । ५६१. तस्सेव से काले उक्कस्सयमवहाणं । ५६२. जहा कोहसंजलणस्स तहा माण-मायासंजलण-पुरिसवेदाणं ।
५६३. लोहसंजलणस्स उक्कस्सिया वड्डी कस्स ? ५६४. गुणिदकम्मसिएण लहुचत्तारि वारे कसाया उवसामिदा । अपच्छिमे भवे दो वारे कसायोवसामेऊण खवणाए अब्भुट्टिदो जाधे चरिमसमए अंतरमकदं ताधे उक्कस्सिया वड्डी'। ५६५. उक्कस्सिया हाणी कस्स ? ५६६. गुणिदकम्मंसियो तिण्णि वारे कसाए उवसामेऊण चउत्थीए उवसामणाए उवसामेमाणो अंतरे चरिमसमय-अकदे से काले मदो देवो जादो । तस्स समयाहियावलिय-उववण्णस्स-उक्कस्सिया हाणी। ५६७. उक्कस्सयमवट्ठाणमपच्चक्खाणावरणभंगो।
५६८. भय-दुगुंछाणमुक्कस्सिया वड्डी कस्स १५६९. गुणिदकम्मंसियस्स सब्यजघन्य समयप्रबद्धोंका) संक्रमण होगा, उसके संज्वलनक्रोधकी उत्कृष्ट हानि होती है । उसही जीवके तदनन्तरकालमे उत्कृष्ट अवस्थान होता है । जिस प्रकारसे संज्वलनक्रोधके उत्कृष्ट वृद्धि, हानि और अवस्थानकी प्ररूपणा की गई है, उसी प्रकारसे संज्वलनमान, संज्वलनमाया और पुरुषवेदके उत्कृष्ट वृद्धि , हानि और अवस्थानकी प्ररूपणा जानना चाहिए ॥५५७-५६२॥
शंका-संज्वलनलोभकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? ॥५६३॥
समाधान-जिस गुणितकर्माशिक जीवने अल्पकालमे ही चार वार कषायोका उपशमन किया है, वह अन्तिम भवमे दो वार कषायोका उपशमन करके क्षपणाके लिए अभ्युद्यत हुआ। उसने जिस समय चरम समयमे अन्तरको नहीं किया है, उस समय उसके संज्वलनलोभकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है ॥५६४॥
शंका-संज्वलनलोभकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? ॥५६५॥
समाधान-जो गुणितकांशिक जीव तीन चार कपायोका उपशमन करके चौथी वार उपशामनामे कपायोका उपशमन करता हुआ चरम समयमे अन्तरको न करके तदनन्तरकालमे मरा और देव हुआ। उस उत्पन्न हुए देवके एक समय अधिक आवलीके होनेपर संज्वलनलोभकी उत्कृष्ट हानि होती है ॥५६६॥
चूर्णिसू०-संज्वलनलोभके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामित्व अप्रत्याख्यानावरणकषायके अवस्थानस्वामित्वके समान जानना चाहिए ॥५६७॥
शंका-भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? ॥५६८॥
समाधान-गुणितकांशिक क्षपक जिस समय इन दोनो प्रकृतियोके द्रव्यका सर्वसंक्रमण करता है उस समय उसके भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है ॥५६९।।
१ किमट्ठमेसो गुणिदकम्मंसिओ चदुक्खुत्तो कसायोवसामणाए पयट्टा विदो ? अवज्झमाणपयडीहितो गुणस कमेण बहुदव्वसगहणठ्ठ । जयध०