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गा० ५८] प्रदेशसंक्रम-पदनिक्षेप-स्वामित्व-निरूपण
४४७ गुणिदकम्मंसिओ सम्मत्तमुप्पाएदूण लहुचेव पिच्छत्तं गदो जहणियाए मिच्छत्तद्धाए पुण्णाए सम्मत्तं पडिवण्णो । तस्स पढमसमयसम्माइद्विस्स उक्कस्सिया हाणी ।
५४१. अणंताणुबंधीणमुक्कस्सिया बड्डी कस्स ? ५४२. गुणिदकम्मंसियस्स सव्वसंकामयस्स' । ५४३ उक्कस्सिया हाणी कस्स ? ५४४. गुणिदकम्मंसिओ तप्याओग्ग-उकस्सयादो अधापयत्तसंकमादो सम्मत्तं पडिवज्जिऊण विज्झादसंकामगो जादो । तस्स पहमसमयसम्माइद्विस्त उक्कस्सिया हाणी । ५४५. उकस्सयमवहाणं कस्स ? ५४६. जो अधापवत्तसंकमेण तप्पाओग्गुक्कस्सरण वड्डिदण अबढिदो, तस्स उकस्सयमवट्ठाणं ।
५४७ अडकसायाण मुक्कस्सिया वड्डी कस्प्त ? ५४८, गुणिद कम्मंसियस्स सव्वसंकामयस्स । ५४९. उक्कस्सिया हाणी कस्स ? ५५०. गुणिदकम्मंसियो पढम( इसलिए उसकी उत्कृष्ट हानि नही होती है । ) अतएव जो गुणितकर्माशिक जीव सम्यक्त्वको उत्पन्न करके लघुकालसे ही मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ और जघन्य मिथ्यात्वकालके पूर्ण होनेपर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ, उस प्रथमसमयवर्ती सम्यग्दृष्टिके सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि होती है ॥५३९-५४०॥
शंका-अनन्तानुवन्धी कषायोकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? ॥५४ १॥
समाधान-गुणितकर्माशिक जीव अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करते हुए जब सर्वसंक्रमणके द्वारा चरम फालिको संक्रान्त करता है, तब उसके अनन्तानुवन्धी कपायोकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है ॥५४२॥
शंका-अनन्तानुबन्धी कषायोंकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? ॥५४३॥
समाधान-गुणितकर्माशिक जीव तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अधःप्रवृत्तसंक्रमणसे सम्यक्त्वको प्राप्त करके विध्यातसंक्रमणको प्राप्त हुआ। उस प्रथमसमयवर्ती सम्यग्दृष्टिक अनन्तानुबन्धी कषायोकी उत्कृष्ट हानि होती है ॥५४४॥
शंका-अनन्तानुबन्धी कषायोका उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है ? ॥५४५।।
समाधान-जो तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अधःप्रवृत्तसंक्रमणसे वृद्धिको प्राप्त होकर अवस्थित है, उसके अनन्तानुबन्धी कषायोका उत्कृष्ट अवस्थान होता है ॥५४६।।
शंका-आठ मध्यम कषायोकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? ।।५४७।।
समाधान-गुणितकर्माशिक जीव जब चारित्रमोहकी क्षपणाके समय सर्वसंक्रमणके द्वारा उक्त कपायोके सर्वद्रव्यका संक्रमण करता है, तब उसके आठो मध्यम कपायोकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है ॥५४८॥
शंका-आठो कषायोकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? ॥५४९।।
१ गुणिदकम्मसियलक्खणेणागतूण सव्वलहु विसजोयणाए अन्मुट्ठिदस्स चरिमफालीए सव्वस कमेण पयदुक्कस्ससामित्त होइ, तत्थ किंचूणकम्मट्टिदिसंचयस्स वढिसरूवेण संकतिदसणादो । जयध०
२ गुणिदकम्मसियलक्खणेणागतूण सव्वलहु खवणाए अन्मुट्ठिय सव्वसकमेण परिणदम्मि पयदकम्माणमुक्कस्सिया वड्ढी होइ, तत्थ सवसकमेण किंचूणदिवड्ढगुणहाणिमेत्तसमयपबद्धाण पयदवढिसरूवेण सकतिदसणादो। जयध०