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कसाय पाहुड सुत्त [६ वेदक-अर्थाधिकार । १०१. एयजीवेण अंतरं । १०२. भुजगार-अप्पदर-अवद्विदपवेसगंतरं केवचिरं कालादो होदि ? १०३. जहण्णेण एयसमओ । १०४. उक्स्से ण अंतोमुहुत्तं ।
, चूर्णिसू०-अब एक जीवकी अपेक्षा भुजाकार-उदीरकका अन्तर कहते हैं ॥१०१॥
शंका-भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरकका अन्तरकाल कितना है? ॥१०२।।
समाधान-जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है ।।१०३-१०४॥
विशेषार्थ-ग्यारहवें गुणस्थानसे उतरकर किसी एक संज्वलनकी उदीरणा करनेवाला उपशामक पुरुषवेदकी उदीरणा कर भुजाकार-उदीरक हुआ । तदनन्तर समयमें उतनी ही प्रकृतियोंकी उदीरणा कर अवस्थित-उदीरक हो अन्तरको प्राप्त हुआ और तदनन्तर समयमे मरण कर देवोंमें उत्पन्न होकर अधिक प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेपर भुजाकार-उदीरक हुआ। इस प्रकार भुजाकार-उदीरकका एक समयप्रमाण अन्तरकाल सिद्ध हो जाता है। इसीप्रकार नीचेके गुणस्थानोंमें भी जानना चाहिए । अब अल्पतरका जघन्य अन्तर कहते हैं-भय
और जुगुप्साके साथ विवक्षित उदीरणास्थानकी उदीरणा करनेवाला कोई एक गुणस्थानवर्ती जीव भयके विना शेष अल्पतर प्रकृतियोंकी उदीरणा कर तदनन्तर समयमें उतनी ही प्रकृतियोंकी अवस्थित उदीरणा कर अन्तरको प्राप्त हुआ । तदनन्तर समयमे ही जुगुप्साके विना
और भी अल्पतर प्रकृतियोकी उदीरणा करनेवाला हुआ, इसप्रकार अल्पतर-उदीरकका एक समयप्रमाण जघन्य अन्तर सिद्ध हो जाता है। इसी प्रकार मिथ्याष्टिके सम्यक्त्वके ग्रहण करनेपर और असंयतसम्यग्दृष्टिके संयमासंयम या संयमके ग्रहण करनेपर भी अल्पतरउदीरकका जघन्य अन्तरकाल सिद्ध होता है। अवस्थित-उदीरककी जघन्य-अन्तर-प्ररूपणा इस प्रकार है-सात या आठ प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाला जीव भयकी उदीरणा करनेपर एक समय भुजाकार-उदीरकरूपसे रहकर अन्तरको प्राप्त हो तदुपरितन समयमे सात या आठ ही प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाला हो गया। इसी प्रकार अल्पतरउदीरकके साथ भी जघन्य अन्तर सिद्ध करना चाहिए । अब उक्त समस्त उदीरकोके उत्कृष्ट अन्तरका वर्णन करते है। उनमे पहले भुजाकार-उदीरकका उत्कृष्ट अन्तर कहते है-पांच प्रकृतिरूप स्थानकी उदीरणा करनेवाला एक संयतासंयत असंयमको प्राप्त होनेके प्रथम समयमें भुजाकार-उदीरणाका प्रारम्भ कर अन्तरको प्राप्त हुआ और सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक अन्तरित रहकर भय या जुगुप्साकी उदीरणाके वशसे फिर भी भुजाकार-उदीरक हुआ । इस प्रकार उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्तकाल-प्रमाण अन्तर प्राप्त हो गया। अथवा चार प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाला एक औपशमिकसम्यग्दृष्टि प्रमत्त या अप्रमत्तसंयत भय या जुगुप्साके प्रवेशसे भुजाकार-उदीरणाको प्रारम्भ कर और स्वस्थानमे ही उत्कृष्ट
अन्तर्मुहूर्त तक रह कर अन्तरको प्राप्त हो उपशमश्रेणीपर चढ़कर सर्वोपशम करके उतरता • हुआ संज्वलन लोभकी उदीरणाकर और नीचे गिरकर जिस समय स्त्रीवेदकी उदीरणा करता हुआ भुजाकार-उदीरक हुआ उस समय भुजाकार-उदीरकका उत्कृष्ट अन्तर सिद्ध हो जाता