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कसाय पाहुड सुन्त
[ ६ वेदक अर्थाधिकार
सामित्तं । ८५. भुजगार - अप्पदर - अवद्विदपवेसगो को होड़ १८६ अण्णदरो । ८७. अवत्तव्यवेगो को होइ १ ८८. अण्णदरो उवसामणादो परिवदमाणगो' ।
८९. एगजीवेण कालो । ९० भुजगारपवेसगो केवचिरं कालादो होदि १९१. जहणेण एयसमओ । ९२. उक्कस्सेण चत्तारि समया ।
चूर्णिसू०.
(० - अव सुजाकार - उदीरणाके स्वामित्वका वर्णन करते है ॥ ८४ ॥ शंका- भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरणा करनेवाला कौन है ? || ८५ ॥ समाधान - कोई एक मिध्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीव है ॥ ८६ ॥ शंका- अवक्तव्य - उदीरणा करनेवाला कौन जीव है ? ॥ ८७ ॥ समाधान- उपशामनासे गिरनेवाला कोई एक जीव है ॥ ८८ ॥
विशेषार्थ -: - भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरणा करनेवाले जीव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं और मिध्यादृष्टि भी होते है । किन्तु अवक्तव्य - उदीरणा करनेवाला मोहके सर्वोपशमसे ग्यारहवे गुणस्थानसे गिरकर एक प्रकृति की उदीरणा प्रारंभ करनेवाला प्रथमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायसंयत या मरकर देवगतिमे उत्पन्न हुआ प्रथम समयवर्ती देव होता है । इन दोनो बातोंके बतलानेके लिए सूत्रमें 'अन्यतर' पद दिया है ।
चूर्णिसू० - अब एक जीवकी अपेक्षा भुजाकार उदीरकका कालका कहते हैं ॥ ८९ ॥ शंका-भुजाकार उदीरकका कितना काल है ? ॥ ९०॥ समाधान-जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल चार समय है ॥ ९१-९२।। विशेषार्थ - सात प्रकृतिरूप स्थानकी उदीरणा करनेवाला सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव भय-जुगुप्सामेंसे किसी एकका प्रवेश करके भुजाकार - उदीरक हुआ । पुनः द्वितीय समयमे इन्ही आठो प्रकृतियोकी उदीरणा करनेपर भुजाकार- उदीरकका एक समयप्रमाण जघन्य काल सिद्ध होता है । उत्कृष्टकाल के चार समय इस प्रकार सिद्ध होते हैं- औपशमिकसम्यक्त्वी प्रमत्तसंयत, संयतासंयत और असंयतसम्यग्दृष्टि ये तीनो ही यथाक्रमसे चार, पाँच और छह प्रकृतियोकी उदीरणा करते हुए अवस्थित थे । जब औपशमिकसम्यक्त्वका का एक समयमात्र शेप रहा, तब वे सभी ससादनगुणस्थानको प्राप्त हुए । इसप्रकार एक समय प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् ही दूसरे समय मे मिथ्यात्वगुणस्थान मे पहुँचनेपर द्वितीय समय, तत्पचात् ही भयकी उदीरणा करनेपर तृतीय समय और तदनन्तर ही जुगुप्साकी उदीरणा करनेपर चतुर्थ समय उपलब्ध हुआ । इसप्रकार भुजाकार- उदीरकका उत्कृष्ट काल चार समय प्राप्त होता है । अथवा ग्यारहवें गुणस्थानसे उतरनेवाला और किसी एक संज्वलन कपायकी उदीरणा करनेवाला अनिवृत्तिकरण संयत पुरुषवेदकी उदीरणा कर प्रथम वार भुजाकार उदीरक हुआ । तदनन्तर समयमें भरण कर देवोमे उत्पन्न होने के प्रथम समयमे प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान कपायोंकी उदीरणा करनेपर द्वितीय वार, तत्पश्चात् भयकी उदीरणा करनेपर तृतीय वार और १ सोममं काढूण परिवदमानगो पढमसमयहुमतापराइयो पट्टमममय देवो वा अवत्तव्यपवेमगो
होइ । जयध