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वेदक- सन्निकर्ष-निरूपण
छह पंचहं चदुण्हं णियमा पवेसगा । ५३. दोन्हमेक्किस्से पवेसगा भजियव्वा ।
५४. णाणाजीवेहि कालो । ५५. एक्किस्से दोहं पवेसगा केवचिरं कालादो होंति ९ ५६. जहणेण एयसमओ । ५७. उक्कस्सेण अंतोमुद्दत्तं । ५८, सेसाणं पयडीणं पवेसगा सव्वद्धा ।
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५९. णाणाजीवेहि अंतरं । ६०, एकिस्से दोहं पवेसगंतरं केवचिरं कालादो होदि ९ ६१. जहणेण एयसमओ । ६२. उक्कस्सेण छम्मासा । ६३. सेसाणं पयडीणं पवेसगाणं णत्थि अंतरं ।
६४. सण्णियासो | ६५. एकिस्से पवेसगो दोण्हमपवेसगो । ६६. एवं सेसाणं 1
जीव नियमसे दश, नौ, आठ, सात, छह, पॉच और चार प्रकृतिरूप स्थानोकी उदीरणा करनेवाले सर्व काल पाये जाते है । ( क्योकि, नाना जीवोकी अपेक्षा उक्त स्थानोकी उदीरणा करनेवाले जीवोंका कभी विच्छेद नही पाया जाता । ) किन्तु दो और एक प्रकृर्तिरूप स्थानकी उदीरणा करनेवाले जीव भजितव्य हैं । ( क्योकि, उपशम और क्षपक श्रेणीपर चढ़नेवाले जीव सदा नहीं पाये जाते । ) ॥ ५१-५३॥
चूर्णि सू० - अबे नाना जीवोकी अपेक्षा उदीरणास्थानोंका काल कहते हैं ॥५४॥ शंका- एक और दो प्रकृतिरूप स्थानोंकी उदीरणा करनेवाले जीवोका कितना काल है ? ॥५५॥
समाधान - जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । ( क्योंकि, उपशम या क्षपकश्रेणीका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त ही है ) शेष प्रकृतिरूप स्थानोकी उदीरणा करनेवाले सर्व काल पाये जाते हैं ।। ५६-५८॥
चूर्णिसू०- ० - अब नाना जीवोकी अपेक्षा उदीरणास्थानोका अन्तर कहते हैं ॥ ५९ ॥ शंका- एक और दो प्रकृतिरूप उदीरणास्थानोका अन्तरकाल कितना है ? ॥६०॥ समाधान- जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह मास है । क्योंकि, क्षपकश्रेणीका उत्कृष्ट विरहकाल छह मास होता है | ) ॥ ६१-६२॥ चूर्णिसू० - शेष प्रकृतिरूप उदीरणास्थानोका अन्तर नही होता
( क्योकि, उनकी
उदीरणा करनेवाले जीव सर्वकाल पाये जाते हैं । ) ॥ ६३ ॥
चूर्णिस् ० ( ० - अब उदीरणास्थानोके सन्निकर्षका वर्णन करते हैं - एक प्रकृतिरूप स्थानकी उदीरणा करनेवाला दो प्रकृतिरूप स्थानकी उदीरणा नही करता है । ( क्योकि स्वामि-भेदकी अपेक्षा दोनों परस्पर विरोधी स्वभाववाले है । ) इसीप्रकार शेप उदीरणास्थानोका सन्निकर्ष जानना चाहिए || ६४-६६॥
ताम्रपत्रवाली प्रतिमें 'पवेसगा केवचिरं कालादो होदि' ऐसा पाठ मुद्रित है ।
(देखो पृ० १३७२ )