________________
गा० ५८ ]
प्रदेशसंक्रम-पदनिक्षेप स्वामित्व-निरूपण
४४५
५२५. सामित्तं । ५२६. मिच्छत्तस्स उकस्सिया वड्डी कस्स १५२७. गुणिदकम्मं सिस्स मिच्छत्तक्ववयस्स सव्वसंकामयस्स' । ५२८. उक्कस्सिया हाणी कस्स ! ५२९. गुणिदकम्मंसियस्स सम्मत्तमुप्पादूण गुणसंकमेण संकामिदूण पढमसमयचिज्ज्ञादसंकामयस्सर । ५३०. उकस्सयमवद्वाणं कस्स १५३१. गुणिदकम्मंसिओ पुव्युप्पण्णेण सम्मत्तेण मिच्छत्तादो सम्मत्तं गदो तं दुसमयसम्माइट्टिमादि काढूण जाव आवलियसम्माट्ठिति एत्थ अण्णदरम्हि समये तप्पा ओग्ग-उकस्सेण वड्डि काढूण से काले तत्तियं संकामयमाणस्स तस्स उस्सयमवद्वाणं ।
० - अब स्वामित्व कहते हैं ॥ ५२५ ॥
चूर्णिसू०
शंका- मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? ॥५२६ ॥
समाधान - जो गुणितकर्माशिक है, मिथ्यात्वका क्षपण कर रहा है, वह जब मिथ्यात्व की चरम फालिको सर्वसंक्रमणसे संक्रान्त करता है, तब उसके मिध्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है ॥ ५२७ ॥
शंका- मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? ॥ ५२८ ॥
समाधान - जो गुणितकर्माशिक ( सातवीं पृथ्वीका नारकी ) सम्यक्त्वको उत्पन्न करके गुणसंक्रमण से मिथ्यात्वका संक्रमण करके विध्यात संक्रमण प्रारंभ करता है, उसके प्रथम समयमें मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि होती है ॥५२९ ॥
शंका-मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है ? ॥ ५३० ॥
समाधान - जो गुणित कर्मांशिक है और पूर्वमे जिसने सम्यक्त्व उत्पन्न किया है, वह मिथ्यात्वसे सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ, उस सम्यग्दृष्टि के सम्यक्त्व उत्पन्न करनेके द्वितीय समयसे लेकर जब तक वह आवली - प्रविष्ट सम्यग्दृष्टि है, तब तक इस अन्तराल के किसी एक समयमै तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट वृद्धि करके तदनन्तर कालमे उतने ही द्रव्यका संक्रमण करता है, TE के मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अवस्थान होता है ॥ ५३१ ॥
१ जो गुणिदकम्मसियो सत्तमा पुढवीए णेरइयो तत्तो उव्वणि सन्धलहु समयाविरोहेण मणुसे सुप्पजिय गव्भादि-अठवस्ताणि गमिय तदो दसणमोहक्खवणाए अन्भुठिदो, तस्स अणियट्टिअद्धाए सखेजेसु भागेषु गदेसु मिच्छत्तचरिमफालिं सव्वस कमेण सछुहमाणयस्स पयदुक्कस्तसामित्त होइ, तत्थ किंचूणदिवड्ढगुणहाणिमेत्तसमयपबद्धाणमुक्कस्सव ढिसरूवेण सकमदसणादो । जयध०
२ जो गुणिदकम्मसिओ सत्तमा पुढवीए णेरइयो अतोमुहुत्तेण कम्ममुक्कस्स काहिदि त्ति विवरीयभावमुवगतूण सम्मत्तप्पा यणाए वावदो, तस्स सव्वुक्कस्सेण गुणसकमेण मिच्छत्त संकामेमाणयस्स चरिमसमयगुणसमादो पढमसमयविज्झादसकमे पदिदस्स पयदुक्कस्ससामित्त होइ । तत्थ किंचूणच रिमगुणसकमदव्वस्स हाणिसरुवेण सभवदसणादो । जयध०
३ त जहा - तहा सम्मत्त पडिवण्णस्स पढमसभए अवत्तव्वसकमो होइ । पुणो विदियसमए तप्पाओग्गुक्कस्सएण सकमपज्जाएण वडिदस्त वढिसकमो जायदे । एसो च वढिसकमो समयपत्रद्धस्सा सखेज दिभागमेत्तो। एवमेदेण तप्पा ओग्गुक्कस्येणासखेन दिभागेण वडिदूण से काले आगमणिनराण सरिसत्तवसेण तत्तिय चेव सकामेमाणयस्स तस्स उकस्मयमवट्ठाण होदि । एव तदियादिसमासु वि तप्पा ओग्गुकस्सेण