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कसाय पाहुड सुत्त [६ वेदक-अर्थाधिकार २.१. चउण्हं पयडीणं पवेसगस्स चवीस भंगा । २२. पंचण्हं पयडीणं पचेसगस्स चत्तारि चउवीस भंगा । २३. छण्हं पयडीणं पसगस्स सत्त-चउवीस भंगा।
चूर्णिसू०-चार प्रकृतियोकी उदीरणा करनेवालेके चौवीस भंग होते है ॥२१॥
विशेपार्थ-हास्य-रति और अरति शोक युगलमेंसे किसी एक युगलके साथ किसी एक वेद और किसी एक संज्वलनकपायकी उदीरणा करनेपर चार प्रकृतिरूप उदीरणास्थान होता है। अतएव उपर्युक्त बारह भंगोकी उत्पत्ति हास्य-रति युगलके साथ भी संभव है
और अरति-शोक युगलके साथ भी । इस प्रकार चार प्रकृतियोकी उदीरणा करनेवाले जीवके (१२४ २-२४ ) चौबीस भंग होते है ।
चूर्णि सू०-पॉच प्रकृतियोकी उदीरणा करनेवालेके चार-गुणित चौवीस भंग होते है ॥२२॥
विशेपार्थ-उक्त चार प्रकृतिरूप उदीरणास्थानमे भय, जुगुप्सा, सम्यक्त्वप्रकृति, अथवा किसी एक प्रत्याख्यानकपायके प्रवेश करनेपर पॉच प्रकृतिरूप उदीरणास्थान होता है । अतः उपर्युक्त चौवीस भंगोको क्रमशः इन चारो प्रकृतियोकी उदीरणाके साथ मिलानेपर चार-गुणित चौवीस अर्थात् ( २४४४९६) च्यानवे भंग होते है। इसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-भयप्रकृतिकी उदीरणाके साथ उपयुक्त २४ भंग, जुगुप्साप्रकृतिकी उदीरणा के साथ २४ भंग, भय और जुगुप्साको छोड़कर सम्यक्त्वप्रकृतिकी उदीरणाके साथ २४ भंग, इस प्रकार ७२ भंग तो प्रमत्त-अप्रमत्तसंयतोके होते है । तथा क्षायिकसम्यग्दृष्टि, अथवा
औपशमिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयतके भय-जुगुप्साके विना प्रत्याख्यानकपायके प्रवेशसे २४ भंग और होते है। इसप्रकार सव मिलाकर पॉच प्रकृतियोकी उदीरणा करनेवाले जीवके ( ७२+२४=९६ ) छ्यानवे भंग होते हैं ।
- चूर्णिसू०-छह प्रकृतियोकी उदीरणा करनेवालेके सात गुणित चौवीस भंग होते है ॥२३॥
विशेषार्थ-उपर्युक्त पॉच प्रकृतिरूप उदीरणास्थानमें भय, जुगुप्सा या अप्रत्याख्यानावरण कपायके मिलानेपर छह प्रकृतिरूप उदीरणास्थान होता है। इस स्थानके सातगुणित चौवीस अर्थात् (२४ x ७=१६८) एकसौ अड़सठ भंग होते हैं। वे इस प्रकार हैं-औपशमिकसम्यग्दृष्टि या क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतके भय और जुगुप्साप्रकृतिकी उदीरणाके साथ उपयुक्त प्रथम २४ भंग, वेदकसम्यग्दृष्टि संयतके भयके विना केवल जुगुप्साप्रकृतिके साथ द्वितीय २४ भंग, उसीके जुगुप्साके विना केवल भयप्रकृतिके साथ तृतीय २४ भंग, इस प्रकार संयतके आश्रयसे तीन चौबीस (२४+२४+२४-७२) भंग होते हैं । पुनः औपशमिक या क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतके जुगुप्साके विना प्रत्याख्यानावरण कपायके किसी एक भेदके साथ भयप्रकृतिका वेदन करनेपर चतुर्थ २४ भंग होते हैं। इसी जीवके भयके विना किसी एक प्रत्याख्यानावरण कपाय और जुगुप्साके साथ पंचम