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कसाय पाहुड सुत्त [५ संक्रम-अर्थाधिकार पदेससंकमट्ठाणाणि । जस्स कम्मस्स सव्वसंकमो अस्थि, तस्स कम्मस्स अणंताणि पदेससंकमट्ठाणाणि।
७३६. माणस्स जहष्णए संतकम्मट्ठाणे असंखेज्जा लोगा पदेससंकमट्ठाणाणि | ७३७. तम्मि चेव जहण्णए माणसंतकम्मे विदियसंकमट्ठाणविसेसस्स असंखेज्जलोगभागमेत्ते पक्खित्ते माणस्स विदियसंकमाणपरिवाडी । ७३८. तत्तियमेत्ते चेव पदेसग्गे कोहस्स जहण्णसंतकम्मट्ठाणे पक्खित्ते कोहस्स विदियसंकमट्ठाणपरिवाडी । ७३९. एदेण कारणेण माणपदेससंकमट्ठाणाणि थोवाणि, कोहे पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ७४०. एवं सेसेसु वि कम्मेसु वि णेदव्याणि ।
एवं गुणहीणं वा गुणविसिहमिदि अत्थ-विहासाए समत्ताए पंचमीए मुलगाहाए अत्थपरूवणा समत्ता।
तदो पदेससंकमो समत्तो । असंख्यात होते है। जिस कर्मका सर्वसंक्रमण होता है, उस कर्मके प्रदेशसंक्रमस्थान अनन्तगुणित होते हैं ॥७३५॥
चूर्णिसू०-मानके जघन्य सत्कर्मस्थानमे असंख्यातलोकप्रमाण प्रदेशसंक्रमस्थान होते है। उस ही मानके जघन्य सत्कर्मम द्वितीय संक्रमस्थानविशेषके असंख्यातलोकभागमात्र प्रक्षिप्त करनेपर मानकी द्वितीय संक्रमस्थानपरिपाटी उत्पन्न होती है। तावन्मात्र ही प्रदेशाग्रके क्रोधके जघन्य सत्कर्मस्थानमें प्रक्षिप्त करनेपर क्रोधकी द्वितीय संक्रमस्थानपरिपाटी उत्पन्न होती है-1- इस कारणसे मानके प्रदेशसंक्रमस्थान थोड़े होते हैं और क्रोधके प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक होते है । इसी प्रकार शेष कर्मों में भी संक्रमस्थानोकी हीनाधिकताके कारणकी प्ररूपणा करना चाहिए ॥७३६-७४०॥ इस प्रकार 'गुणहीणं वा गुणविसिटू' इस पद्रकी विभापाके.समाप्त होनेके साथ .
पाँचवीं मूलगाथाकी अर्थप्ररूपणा समाप्त हुई । इस प्रकार प्रदेशसंक्रमण-अधिकार समाप्त हुआ।