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कसाय पाहुड सुत्त [५ संक्रम-अर्थाधिकार ६४३. एवं सव्यासु परिवाडीसु । ६४४.णवरि सव्यसंकमे अणंताणि संकमट्ठाणाणि । ६४५. एवं सबकम्माणं । ६४६ णवरि लोहसंजलणस्स सव्यसंकमो णत्यि ।
६४७. अप्पाबहुअं । ६४८. सव्वत्थोवाणि लोहसंजलणे पदेससंकमट्ठाणाणि। ६४९. सम्मत्ते पदेससंकमट्ठाणाणि अणंतगुणाणि । ६५०. अपचक्खाणमाणे पदेससंकमट्ठाणाणि असखेज्जगुणाणि । ६५१. कोहे पदेससंकमठाणाणि विससाहियाणि। ६५२. मायाए पदेससंक्रमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ६५३. लोहे पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ६५४. पञ्चक्खाणमाणे पदेससंकमट्ठाणाणि विसे साहियाणि । ६५५. कोहे पदेससंक्रमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ६५६ मायाए पदेससंकमाणाणि विसेसाहियाणि । ६५७. लोहे पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ६५८. अणंताणुवंधिमाणस्स पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ६५९. कोहे पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ६६०. मायाए पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ६६१. लोभे पदेससंकमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।
चूर्णिसू०-इसीप्रकार सर्वसंक्रमस्थानपरिपाटियोमें असंख्यात लोकप्रमित संक्रमस्थान होते हैं। केवल सर्वसंक्रमणमें अनन्त संक्रमस्थान होते हैं। जिस प्रकार मिथ्यात्वके संक्रमस्यान होते हैं उसी प्रकार सर्व कर्मोंके संक्रमस्थान जानना चाहिए। केवल संज्वलनलोभका सर्वसंक्रमण नहीं होता है ॥६४३-६४६॥
चूर्णिसू०-अब प्रदेशसंक्रमस्थानोका अल्पबहुत्व कहते है। संज्वलनलोभमे प्रदेशसंक्रमस्थान सबसे कम हैं। संज्वलनलोभसे सम्यक्त्वप्रकृतिमे प्रदेशसंक्रमस्थान अनन्तगुणित है। सम्यक्त्वप्रकृतिसे अप्रत्याख्यानमानमें प्रदेशसंक्रमस्थान असंख्यातगुणित हैं । अप्रत्याख्यानमानसे अप्रत्याख्यानक्रोधमे प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं । अप्रत्याख्यानक्रोधसे अप्रत्याख्यानमायामे प्रदेशसंक्रमस्थान विशेप अधिक हैं। अप्रत्याख्यानमायासे अप्रत्याख्यानलोभमे प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं। अप्रत्याख्यानलोमसे प्रत्याख्याननानमें प्रदेशलंक्रमस्थान विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानमानसे प्रत्याख्यानक्रोधमें प्रदेशसंक्रसस्थान विशेष अधिक हैं । प्रत्याख्यानक्रोधसे प्रत्याख्यानमायामे प्रदेशसंक्रमस्थान विशेप अधिक है। प्रत्याख्यानमायासे प्रत्याख्यानलोभमे प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानलोभसे अनन्तानुवन्धीमानमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं। अनन्तानुवन्धीमानसे अनन्तानुबन्धीक्रोधमे प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं। अनन्तानुवन्धीक्रोधसे अनन्तानुवन्धीमायामें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेप अधिक हैं। अनन्तानुबन्धीमायासे अनन्तानुवन्धीलोभमे प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं ॥६४७-६६१॥
१ कि वारणं; परपयडिसछोहणेण विणा खविदत्तादो। तम्हा लोहसजलणस्सासखेज्जलोगमेत्ताणि चेव संकमट वागाणि अघापवत्तसकममस्सिऊण पल्वेयवाणि त्ति भावत्यो । जयध०
२ दो लोहसंजलणत्स सब्यसंकमाभावेणासखेजलोगमेत्ताण चेव सकमट्ठाणाणमुवलमादो । जयध० ३ किं कारणं; अभवसिद्धिएहितो अणतगुणसिटाणमणतमागपमाणत्ताटो । जयध०