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गा० ५८]
प्रदेशसंक्रम-भुजाकार-काल-निरूपण केवचिरं कालादो होदि १ ३३९. जहण्णुक्कस्सेण एयसमओ' ।
३४०. वारसकसाय-पुरिसवेद-भय-दुगुंछाणं भुजगार-अप्पदर-संकमो केवचिरं कालादो होदि ? ३४१. जहण्णेणेयसमओ । ३४२. उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। ३४३. अवढिदसंकमो केवचिरं कालादो होदि १ ३४४.जहण्णेण एयसमओ। ३४५. उकस्सेण संखेज्जा समया । ३४६ अवत्तव्यसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? ३४७. जहण्णुकस्सेण एयसमओ।
३४८. इत्थिवेदस्स भुजगारसंकमो केवचिरं कालादो होदि १ ३४९. जहण्णेण एयसमओ । ३५०. उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । ३५१. अप्पयरसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? ३५२. जहण्णेण एगसमओ । ३५३. उक्कस्सेण वे छावहिसागरोवमाणि
शंका-अनन्तानुबन्धी कपायोके अवक्तव्यसंक्रमणका कितना काल है ? ॥३३८॥ समाधान-जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समयमात्र है ॥३३९॥
शंका-अप्रत्याख्यानावरणादि वारह कषाय, पुरुपवेद, भय और जुगुप्सा, इतनी प्रकृतियोंके भुजाकार और अल्पतर संक्रमणका कितना काल है १ ॥३४०॥
समाधान-उक्त प्रकृतियोका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण है ॥३४१-३४२॥
शंका-उक्त प्रकृतियोके अवस्थितसंक्रमणका कितना काल है ? ॥३४३॥
समाधान-जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल संख्यात समय है ॥३४४-३४५॥
शंका-उन्ही प्रकृतियोके अवक्तव्यसंक्रमणका कितना काल है १ ॥३४६॥
समाधान-उक्त प्रकृतियोके अवक्तव्यसंक्रमणका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समयमात्र है ॥३४७॥
शंका-स्त्रीवेदके भुजाकारसंक्रमणका कितना काल है ? ॥३४८।। समाधान-जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥३४९-३५०॥ शंका-स्त्रीवेदके अल्पतरसंक्रमणका कितना काल है १ ॥३५१॥
समाधान-जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात वर्ष अधिक दो वार छयासठ सागरोपम है ॥३५२-३५३।।
१ विसजोयणापुव्वसजोगणवकबधावलिवदिक्कतपढमसमए तदुवलभादो । जयध०
२ एइदिएहिंतो पचिदिएसु पचिदिएहिंतो वा एइदिएसुप्पण्णस्स जहाकम तदुभयकाल्स्स तप्पमाणत्तसिद्धीए विरोहाभावादो । जयध०
३ सव्वोवसामणापडिवादपढमसमयादो | जयध०
४ त कथ ? अण्णवेदबधादो एयसमयमिस्थिवेदबध कादूण तदण तरसमए पुण्णो वि पडिवक्खवेदबधमाढविय वधावलियवदिफतसमए कमेण सकामेमाणयस्स एयसमयमेत्तो इथिवेदत्स भुजगारसकमकालो जहण्णकालो होइ । जयध०