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गा० १३-१४]
निर्देशादि अनुयोगोंसे कषाय-प्ररूपण
सात प्रकारके कपायोंका इन अनुयोगद्वारोसे वर्णन नहीं करनेका कारण यह है कि प्रकृत ग्रन्थमे उनका कोई प्रयोजन नहीं है । अब उन छहो अनुयोगद्वारोसे कषायोका व्याख्यान किया जाता है । (१) कपाय क्या वस्तु है ? नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र, इन चारो अर्थनयोकी अपेक्षा क्रोधादि चारो कषायोका वेदन या अनुभवन करनेवाला जीव ही कषाय है, क्योकि, जीवद्रव्यको छोड़कर अन्यत्र कषाय पाये नहीं जाते है । शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत, इन तीनो शब्दनयोकी अपेक्षा द्रव्यकर्म और जीवद्रव्यसे भिन्न क्रोध, मान, माया और लोभ, ये चारो कपाय कहलाते है, क्योकि, शब्दनय द्रव्यको विषय नहीं करते हैं । इस प्रकारका वर्णन करना निर्देश अनुयोगद्वार है (२) कषाय किसके होता है ? नैगमादि चारो अर्थनयोकी अपेक्षा कषाय जीवके होता है, अर्थात् कपायका स्वामी जीव है, क्योकि, अर्थनयोकी अपेक्षा जीव और कषायोके भेदका अभाव है। तीनो शब्दनयोकी अपेक्षा कषाय किसीके भी नहीं होता है, अर्थात् कषायका स्वामी कोई नहीं है, क्योकि, भावकपायोके अतिरिक्त जीवद्रव्य और कर्मद्रव्यका अभाव है । इस प्रकार कपायोके स्वामीका प्रतिपादन करना स्वामित्व अनुयोगद्वार है । (३) कपाय किसके द्वारा उत्पन्न होता है ? नैगमादि चारो अर्थनयोकी अपेक्षा कपाय अपने उपादान और निमित्तकारणोसे उत्पन्न होता है । किन्तु तीनों शब्दनयोकी अपेक्षा कपाय किसीके द्वारा नहीं उत्पन्न होता है । अथवा, अर्थनयोकी अपेक्षा कषाय औदयिकभावसे और शब्दनयोकी अपेक्षा परिणामिकभावसे उत्पन्न होता है, क्योकि इन नयोकी दृष्टिमे कारणके बिना कार्यकी उत्पत्ति होती है । इस प्रकारका वर्णन करना साधन अनुयोगद्वार है। (४) कषाय किसमे उत्पन्न होता है ? चारो अर्थनयोकी अपेक्षा राग-द्वेषके साधनभूत बाहरी वस्त्र, अलंकार आदि पदार्थोंमे उत्पन्न होता है। तीनो शब्दनयोकी अपेक्षा कपाय अपने आपमे ही स्थित है, अर्थात् कषायका अधिकरण कपाय ही है, अन्य पदार्थ नहीं, क्योकि, कषायसे भिन्न पदार्थ कषायका आधार हो नहीं सकता है । इस प्रकारके वर्णन करनेको अधिकरण अनुयोगद्वार कहते है । ( ५ ) कपाय कितने काल तक होता है ? नाना जीवोकी अपेक्षा कपाय सर्वकाल होता है । एक जीवकी अपेक्षा सामान्य कपायका काल अनादि-अनन्त, अनादि-सान्त और सादि-सान्त है । कपाय-विशेषकी अपेक्षा प्रत्येक कपायका जघन्य और उत्कृष्ट-काल अन्तमुहूर्त है। किन्तु, मरण और व्याघातकी अपेक्षा कपायका जघन्य-काल एक सभय है। इस प्रकारके वर्णन करनेको स्थिति अथवा काल नामक अनुयोगद्वार कहते हैं। (६) कपाय कितने प्रकारका होता है ? कपाय और नोकषायके भेदसे कपाय दो प्रकारका है, अनन्तानुबन्धी आदिके भेदसे चार प्रकारका है और उत्तर प्रकृतियोकी अपेक्षा पच्चीस प्रकारका है। इस प्रकारसे कपायोके भेद-वर्णन करनेको विधान-नामक अनुयोगद्वार कहते है। जैसे इन छह अनुयोगद्वारोसे कपायका प्रतिपादन किया है, उसी प्रकार प्रेय और द्वेपका भी व्याख्यान करना चाहिए, क्योकि, उनके विना प्रेय और द्वेपका यथार्थ निर्णय हो नहीं हो सकता।