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१०० कसाय पाहुड सुत्त
[३ स्थितिविभक्ति ४६. लोहसंजलणस्स जहण्णद्विदिविहत्ती कस्स ? ४७. खवयस्स चरिमसमयसकसायस्स । ४८. इत्थिवेदस्स जहण्णहिदिविहत्ती कस्स ? ४९. चरिमसमयइत्थिवेदोदयखवयस्स । ५०. पुरिसवेदस्स जहण्णद्विदिविहत्ती कस्स ? ५१. पुरिसवेदखवयस्स चरिमसमयअणिल्लेविदपुरिसवेदस्स । ५२. णqसयवेदस्स जहण्णट्ठिदिविहत्ती कस्स ? ५३. चरिमसमयणqसयवेदोदयक्खवयस्स । ५४. छण्णोकसायाणं जहण्णहिदिविहत्ती कस्स ? ५५. खवयस्स चरिमे द्विदिखंडए वट्टमाणस्स । ५६. णिरयगईए णेरइएसु सम्मत्तस्स जहणहिदिविहत्ती कस्स ? ५७. चरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयस्स ।
की जघन्यस्थिति विभक्ति होती है ।
चूर्णिमू०-लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? चरम-समयवर्ती सकषायी क्षपकके लोभसंज्वलनकषायकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है ॥४६-४७॥
विशेषार्थ-अधःस्थितिगलनाके द्वारा द्विचरमादि निषेकोके गलानेवाले, स्थितिकांडकघातके द्वारा समस्त उपरितन स्थितिनिषेकोके घात करनेवाले, तथा उदयागत एक निपेकमे वर्तमान ऐसे चरमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपक संयतके लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है।
चूर्णिसू०-खीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? स्त्रीवेदके चरम समयवर्ती उदयागत एक निपेक-स्थितिमें वर्तमान स्त्रीवेदी बादरसाम्परायिक संयत क्षपकके स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। पुरुपवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? चरमसमयवर्ती और पुरुषवेदका जिसने अभी क्षपण नही किया है, ऐसे पुरुषवेदी वादरसाम्परायिक क्षपकके पुरुपवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। नपुंसकवेदकी जघन्यस्थितिविभक्ति किसके होती है ? नपुंसकवेदके चरमसमयवर्ती उदयागत एक निषेकस्थितिमे वर्तमान नपुंसकवेदके उदयवाले वादरसाम्परायिकसंयत क्षपकके नपुंसकवेदकी जघन्यस्थितिविभक्ति होती है। हास्य आदि छह नोकपायोकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? हास्यादि छह नोकषायोके अन्तिम स्थितिखंडमे वर्तमान क्षपकके छहो नोकपायोकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। नरकगतिमे नारकियों में सम्यक्त्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? जिसके दर्शनमोहनीयकर्मके क्षय करनेमे एक समय शेप है ऐसे नारकीके सम्यक्त्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है ॥४८-५७॥
विशेषार्थ-जो मिथ्यादृष्टि मनुष्य तीव्र आरंभ-परिणामोके द्वारा नरकायुका बंध कर चुका है, और पीछे तीर्थंकरके पादमूलको प्राप्त होकर और सम्यक्त्वको ग्रहण करके आयुके अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अवशिष्ट रहनेपर तीनो करणोको करके मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दोनो प्रकृतियोको अनिवृत्तिकरणके कालमे क्षपणकर, सम्यक्त्वप्रकृतिके चरम स्थितिकांडककी चरमफालीको ग्रहण करके तथा उदयादि गुणश्रेणीरूपसे घात करके स्थित है, ऐसे जीवको कृतकृत्यवेदक कहते है । उसी अवस्थामे जीवनके समाप्त होनेके साथ ही कापोतलेश्यासे