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कसाय पाहुड सुत्त
[ ५ संक्रम-अर्थाधिकार
एदमप्पा बहुअस्स साहणं । ४२५. एवं सोलसकसाय णवणोकसायाणं । ४२६. सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणमुकस्सिया हाणी कस्स १ ४२७. दंसणमोहणीयक्खवयस्स विदियअणुभागखंडयपढमसमयसंकामयस्त तस्स उक्कस्सिया हाणी' । ४२८. तस्स चेव से काले उक्कस्यमाणं । ४२९. मिच्छत्तस्स जहणिया बड्डी कस्स १ ४३०. सुहुमेइ दियकम्मेण जहण्णएण जो अनंतभागेण वडिदो तस्स जहणिया बड्डी । ४३१. जहणिया हाणी कस्स १ ४३२. जो बड्ढाविदो तम्मि घादिदे तस्स जहणिया हाणी । ४३३. एगदरत्थमवद्वाणं । ४३४. एवम कसायाणं । ४३५. सम्मत्तस्स जहणिया हाणी कस्स १ कांडकको घात करने के लिए ग्रहण करता है, वह विशेप हीन है । यह कथन वक्ष्यमाण अल्पबहुत्वका साधक है ।।४२२-४२४॥
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चूर्णिस० - इसी प्रकार मिध्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभागवृद्धि, हानि और अवस्थानके समान सोलह कषाय और नव नोकपायोकी अनुभागवृद्धि, हानि और अवस्थानोका स्वामित्व जानना चाहिए || ४२५॥
शंका-सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्व के अनुभागकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? ||४२६ ॥
समाधान-दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके समय द्वितीय अनुभागकांडकको प्रथम समयमे संक्रमण करनेवाले दर्शनमोहनीय क्षपकके उक्त दोनो कर्मोंके अनुभागकी उत्कृष्ट हानि होती है । उसी जीवके तद्नंतर समयमे कर्मोंके अनुभागका उत्कृष्ट अवस्थान होता है ||४२७-४२८॥ शंका- मिध्यात्वके अनुभागकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? ॥४२९॥
समाधान - जो जीव सूक्ष्म एकेन्द्रियके योग्य जघन्य अनुभागसत्कर्म से विद्यमान था, वह जब परिणामोके निमित्तसे अनन्तभागरूप वृद्धिसे बढ़ा, तव उसके मिथ्यात्वके अनुभागकी जघन्य वृद्धि होती है ॥४३० ॥
शंका-मिध्यात्वके अनुभागकी जघन्य हानि किसके होती है ? ॥४३१॥
समाधान - जो सूक्ष्म निगोदियाका जघन्य अनुभाग संक्रमण अनन्तभाग वृद्धिरूप से बढ़ाया गया, उसके घात करनेपर उस जीवके मिध्यात्वकी जघन्य हानि होती है ॥ ४३२ ॥ चूर्णिसू० - मिथ्यात्व के अनुभागकी जघन्य वृद्धि या हानि करनेवाले किसी एक जीवके तदनन्तर समयमे मिध्यात्वके अनुभागका अवस्थान होता । इसी प्रकार आठों पायो जघन्य वृद्धि हानि और अवस्थानको जानना चाहिए ॥ ४३३-४३४ ॥
शंका-सम्यक्त्वप्रकृति के अनुभागकी जघन्य हानि किसके होती है ? ॥ ४३५॥
१ दसणमोहक्त्रवणाए अपुष्वकरणपढमाणुभागखडयं घादिय विदियाणुभागखंडए वट्टमाणस्स पढमसमए पयदकम्माणमुक्कस्सहाणी होइ, तत्थ सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणमणुभागसंतकम्मस्साणताणं भागाणमेकवारेण हाइदूणागतिमभागे समवट्ठाणदंसणादो । जयध०
२ लहणवड्ढि वसईकयाणुभागस्येव तत्थ हाणिसरूवेण परिणामदसणादो | ण चाण तिमभागस्स खडवधादो णत्थित्ति पच्चवट्ठेयं, ससारावत्याए छव्विहाए हाणीए घादस्स पवृत्तिअ०भुवगमादो । जयघ० ३ कुदो; जद्दण्णवड्ढिहाणीणमण्णदरस्स से काले अवट्ठाणसिद्धिपवाहाणुवलंभादो । जयध०