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कसाय - पाहुड सुत्त
[ ५ संक्रम-अर्थाधिकार सय वेदस्स जहण्णओ पदेससंकमो । ६४. एवं चेव इत्थिवेदस्स वि, णवरि तिपलि - दोवमिसु ण अच्छिदाउगो ।
६५. एयजीवेण कालो । ६६, सव्वेसिं कम्माणं जहण्णुकस्सपदेससंकमो केवचिरं कालादो होदि १६७ जहण्णुकस्सेण एयसमओ' ।
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६८. अंतरं । ६९. सव्वेसि कम्माणमुक्कस्तपदेस संकायस्स गत्थि अंतरं । ७०. अधवा सम्मत्ताणताणुबंधीण मुक्कस्सपदेससंकामयस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ७१. जहणेण असंखेज्जा लोगा । ७२. उक्कस्सेण उबडूपोग्गलपरियहं ।
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चूर्णिसू० - इसी प्रकार ही स्त्रीवेदके जघन्य प्रदेशसंक्रमण के स्वामित्वको जानना चाहिए | विशेषता केवल इतनी ही है कि तीन पल्योपमकी आयुवाले जीवोमे वह नही उत्पन्न होता है ॥ ६४॥ चूर्णिसू० [0-अव एक जीवकी अपेक्षा प्रदेशसंक्रमणके कालको कहते हैं || ६५॥ शंका - सर्व कर्मों के जघन्य और उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमणका कितना काल है ? ॥६६॥ समाधान - सर्व कर्मोंके जघन्य और उत्कृष्ट प्रदेश संक्रमणका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ॥ ६७॥
चूर्णि सू० ० - अव प्रदेशसंक्रमणके अन्तर को कहते है - सर्व कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमणका अन्तर नहीं है । यह एक उपदेशकी अपेक्षा कथन है ।। ६८-६९ ॥
शंका- अथवा अन्य उपदेशकी अपेक्षा सम्यक्त्वप्रकृति और अनन्तानुबन्धी कपायोके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमणका अन्तरकाल कितना है ? ॥ ७० ॥
समाधान- सम्यक्त्वप्रकृति और अनन्तानुवन्धी कपायोके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमणका जघन्यकाल असंख्यात लोक-प्रमित और उत्कृष्टकाल उपार्थपुद्गलपरिवर्तन- प्रमाण है ।।७१-७२ ।।
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१ कुदो; सव्वेसि कम्माण जहष्णुक्कस्सपदेससकमाणमेयसमयादो उवरिमवठाणासभवादो । जयध० २ होउ णाम खवगसव घेण लक्कस्वभावाण मिच्छत्तादिकम्माणमतराभावो, ण वुण सम्मत्ताणता वधीणमतराभावो जुत्तो, तेसिमखवयविसयत्तेण लबुक्कस्तभावाणमतरसभवे विप्पडिसेहाभावादो १ एस दोसो, गुणिदकम्मसियलक्खणेणेयवार परिणदस्स पुणो जहण्णदो वि अढपोग्गलपरियमेत्तकालव्भतरे तव्भावपरिणामो णत्थि त्ति एवविहाहिप्पाएणेदस्स सुत्तस्स पयट्टत्तादो । एसो ताव एक्को उवएसो चुण्णिसुत्तयारेण सिस्साण परुविदो । अण्णेणोवरसेण पुण सम्मत्ताणताणुवधीणमुक्कस्स पढेसस कामयतरसभवो अस्थि त्ति तप्पमाणावहारणड उत्तरमुत्त भणइ । जयध०
३ गुणिदकम्म सियलक्खणेणागतूण णेरइयचरिमसमयादो हेट्ठा अतोमुहृत्तमोसरिय पढमसम्मत्तमुप्पाइय जहावुत्तपदेसे सम्मत्ताणताणुवघीण मुक्कस्सप देससक मस्सादि काढूण अतरिय अणुक्कस्सपरिणामेसु तेत्तियमेत्तकालमच्छिऊण पुणो सव्बलहु गुणिदकिरियासव घमुवसामिय पुव्युत्तेणेव कमेण पडिवण्णतत्र्भावम्मि तदुवलभादो | जयघ०
४ पुव्युत्तविहाणेणेवादि करिय अतरिदस्स देसूदपोग्गल परियमेत्तकाल परिभमिश्र तदवमाणे गुणिदकम्म सिओ होण सम्मत्तमुप्पाइय पुव्व व पडिवगतभावम्मि तदुवलद्वीदो । जयध०