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गा० ५८ ]
प्रदेशसंक्रम-भुजाकार- स्वामित्व-निरूपण
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यसम्माइट्टि त्ति ताव मिच्छत्तस्स भुजगार संकमो होज्ज । २७३. ण हु सव्वत्थ आवलियाए भुजगार संकमो जहणेण एयसमओ । २७४. उक्कस्सेणावलिया समयूणा ।
२७५. एवं ति कासु मिच्छत्तस्स भुजगार संकामगो । २७६. तं जहा । २७७. उवसामग-दुसमयसम्माइट्टिमादि काढूण जाव गुणसंकमो चिताव णिरंतरं भुजगार संकमो । २७८. खवगस्स वा जाव गुणसंकमेण खचिज्जदि मिच्छत्तं ताव निरंतरं भुजगार संकमो । २७९ पुच्प्पादिदेण वा सम्मत्तेण जो सम्मत्तं पडिवज्जदि तं दुसमयसम्म ट्टिमादि काढूण जाव आवलियसम्माट्ठि त्ति एत्थ जत्थ वा तत्थ वा जहण्णेण एयसमयं उक्कस्सेण आवलिया समयूणा भुजगारसंकमो होज्ज । २८०. एवमेदेति काले मिच्छत्तस्स भुजगार संकमो । २८१. सेसेसु समएस जइ संकामगो अप्पयरसंकामगो वा अवत्तव्वसंकामगो वा । २८२. अवट्ठिदसंकामगो मिच्छत्तस्स को होइ ? २८३. पुष्पादिदेण सम्मत्तेण जो सम्मत्तं पडिवज्जदि जाव आवलियसम्माइडि ति एत्थ होज अवद्विदसं कामगो । अण्णम्मि णत्थि ।
उसके मिथ्यात्वका भुजाकारसंक्रमण होता रहता है । आवलीके भीतर सर्वत्र भुजाकार - संक्रमण नही होता, किन्तु जवन्यसे एक समय और उत्कर्ष से एक समय कम आवली तक होता है ॥२७१-२७४॥
अब चूर्णिकार उपर्युक्त अर्थका उपसंहार करते है -
चूर्णिसू० [० - इस प्रकार तीन अवसरोमें जीव मिथ्यात्वका भुजाकारसंक्रमण करता है । वे तीन अवसर इस प्रकार है- उपशामक द्वितीय - समयवर्ती सम्यग्दृष्टिको आदि लेकर जब तक गुणसंक्रमण रहता है, तब तक निरन्तर भुजाकारसंक्रमण होता है । अथवा क्षपकके जब तक गुणसंक्रमणसे मिध्यात्व क्षपित किया जाता है, तब तक निरन्तर भुजाकारसंक्रमण होता है । अथवा जिसने पूर्वमे सम्यक्त्व उत्पन्न किया है, ऐसा जो जीव सम्यक्त्वको प्राप्त होता है, उस द्वितीय - समयवर्ती सम्यग्दृष्टिको आदि करके आवलीके पूर्ण होने तक उस सम्यग्दृष्टि के इस अवसर में जहां कहीं जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से एक समय कम आवली तक भुजाकारसंक्रमण हो सकता है । इस प्रकार इन तीन कालोमे मिथ्यात्वका भुजाकारसंक्रमण होता है ।। २७५-२८० ॥
चूर्णि सू० - - उक्त तीनो अवसरोके शेष समयोमे यदि संक्रमण करता है, तो या तो अल्पतरसंक्रमण करता है, अथवा अवक्तव्यसंक्रमण करता है ॥२८१ ॥
शंका- मिथ्यात्वका अवस्थित संक्रामक कौन जीव है
? ॥ २८२ ॥
समाधान - जिसने पूर्वमे सम्यक्त्व उत्पन्न किया है, ऐसा जो जीव सम्यक्त्वको प्राप्त करता है, वह जब तक आवली - प्रविष्ट सम्यग्दृष्टि है, तब तक इस अन्तरालमे वह अवस्थित संक्रामक हो सकता है । अन्य अवसरमे अवस्थित संक्रामक नहीं होता || २८३ ||
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