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कसाय पाहुड सुत्त [५ संक्रम-अर्थाधिकार एवं 'संकामेदि कदि वा' त्ति एदस्स पदस्स अत्थं समाणिय
अणुभागसंकमो समत्तो। इनसे क्रोध, माया और लोभके विशेष-विशेष अधिक हैं। संज्वलनलोभके हतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थानोंसे संज्वलनमानके हतहतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणित हैं। इनसे क्रोध, माया और लोभके उत्तरोत्तर विशेष अधिक हैं। संज्वलनलोभके हतहतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थानोसे अनन्तानुवन्धीमानके बन्धसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणित है। इनसे क्रोध, माया और लोभके उत्तरोत्तर विशेष-विशेष अधिक हैं। अनन्तानुवन्धी लोभके बन्धसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थानोसे अनन्तानुवन्धीमानके हतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणित हैं। इनसे क्रोध, माया और लोभके उत्तरोत्तर विशेष अधिक है । अनन्तानुवन्धी लोभके हतहतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थानोसे अनन्तानुबन्धीमानके हतहतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणित हैं। इनसे क्रोध, माया और लोभके उत्तरोत्तर विशेष अधिक हैं। अनन्तानुबन्धी लोभके हतहतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थानोंसे मिथ्यात्वके बन्धसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणित है । इनसे हतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणित हैं और इनसे हतहतसमुत्पत्तिकसंक्रमस्थान असंख्यातगुणित हैं । यहाँ सर्वत्र गुणकारका प्रमाण असंख्यात लोक है और विशेषका प्रमाण असंख्यातलोभका प्रतिभाग है। जिन कर्मोंके अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणित हैं, उनके अनुभागसंक्रमस्थान असंख्यातगुणित है। किन्तु जिन कर्मों के अनुभागसत्कर्म विशेष अधिक हैं, उनके संक्रमस्थान भी विशेष अधिक ही हैं । इस प्रकार पाँचवीं मूलगाथाके 'संकामेदि कदि वा' इस पदका अर्थ समाप्त
होने के साथ अनुभागसंक्रमण अधिकार समाप्त हुआ ।